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Channel: Lifestyle News –जीवनशैली – Dastak Times | National Hindi Magazine
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इस बार सावन महीने में दो बार होगा शनि प्रदोष का संयोग

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ज्योतिष : शिव की पूजा शनि की पीड़ा से मुक्ति दिलाने वाली होती है और जब भगवान शिव की सबसे प्रिय तिथि प्रदोष (त्रयोदशी) शनिवार को आ जाए तो यह दिन और भी विशेष हो जाता है। इसके साथ यदि पवित्र श्रावण माह का संयोग बन जाए तो फिर सोने पे सुहागा जैसी स्थिति हो जाती है। इस बार 2020 के श्रावण माह के दोनों प्रदोष के दिन शनिवार का संयोग बन रहा है।

अनेक वर्षों में ऐसा संयोग आता है जब श्रावण माह, प्रदोष तिथि और शनिवार का संयोग बने और वह भी एक ही माह में दो बार। तो यदि आप भी किसी न किसी रूप में शनि की पीड़ा भोग रहे हैं। आपकी जन्मकुंडली में शनि खराब स्थिति में है।

कैसे करें पूजन
भोर के समय स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद अपनी किसी विशेष मनोकामना की पूर्ति के लिए शनि प्रदोष व्रत का संकल्प लेकर भगवान शिव और उनके पूरे परिवार का पूजन करें। दिन भर निराहर रहें या फलाहार करें। शाम को प्रदोष काल में पूजा करें।

प्रदोषकाल सूर्यास्त से एक घंटा पहले से सूर्यास्त के एक घंटे बाद तक का समय होता है। इस प्रदोष काल में पुन: स्नान करें। इसके बाद सर्वप्रथम पूजा स्थल पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके आसन पर बैठें और भगवान शिव की प्रतिमा या तस्वीर को एक चौकी पर स्थापित करें।

इसके बाद भगवान शिव का पंचामृत और फिर गंगाजल से अभिषेक करें। उन्हें पुष्प, बेलपत्र, धतूरा, अक्षत, सफेद चंदन, गाय का दूध आदि अर्पित करें। इस दौरान ऊं नम: शिवाय मंत्र का जाप करें। शिव चालीसा का पाठ करें और अंत में भगवान शिव की आरती करें। क्षमाप्रार्थना करें, प्रसाद वितरित करें।


23 जुलाई को हरियाली तीज पर मां पार्वती को करें प्रसन्न

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ज्योतिष : इस वर्ष यानि 2020 में हरियाली तीज 23 जुलाई को पड़ रही है। सावन माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया को श्रावणी तीज या हरियाली तीज भी कहा जाता है। यह तीज कई नामों से जानी जाती है। जैसे हरियाली तीज, श्रावणी तीज, कजली तीज या मधुश्रवा तीज आदि इसके कई नाम है। यह त्योहार वैसे तो तीन दिन मनाया जाता है, लेकिन अब समय की कमी की वजह से लोग इसे एक ही दिन मनाते हैं। इसमें सुहागिन स्त्रियां निर्जला व्रत रखती हैं। हाथों में नई चूड़ियां, मेहंदी और पैरों में आलता लगाती हैं, जो सुहाग के चिन्ह माने जाते हैं और ये महिलाएं नए वस्त्र पहनकर मां पार्वती की पूजा-अर्चना करती हैं।

यह व्रत केवल महिलाओं तक ही सीमित नहीं होता, बल्कि कई जगहों पर पुरुष मां की प्रतिमा को पालकी पर बैठाकर झांकी भी निकालते हैं। हरियाली तीज के दिन सबसे पहले महिलाएं किसी बगीचे या मंदिर में एकत्रित होकर मां पार्वती की प्रतिमा को रेशमी वस्त्र और गहनों से सजाएं।

अर्द्ध गोले का आकार बनाकर माता की मूर्ति बीच में रखें और माता की पूजा करें। सभी महिलाओं में से एक महिला कथा सुनाए, बाकी सभी कथा को ध्यान से सुनें व मन में पति का ध्यान करें और पति की लंबी उम्र की कामना करें। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपनी सास के पांव छूकर उन्हें सुहागी देती हैं। सास न हो तो जेठानी या घर की बुजुर्ग महिला को देती हैं।

कुछ जगहों पर महिलाएं माता पार्वती की पूजा करने के पश्चात लाल मिट्टी से नहाती हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से महिलाएं पूरी तरह से शुद्ध हो जाती हैं। अनेक स्थानों पर तीज के दिन मेले लगते हैं और मां पार्वती की सवारी बड़े धूमधाम से निकाली जाती है। दिन के अंत में वे खुशी से नाचे-गाएं और झूला झूलें। माता पार्वती से अपने सुहाग को दीर्घायु देने के लिए सच्चे मन से शिव-पार्वती की आराधना करके इस त्योहार को मनाएं। इस त्योहार को पार्वती सौभाग्य मंत्र का जाप करना फलदायक होता है।

पार्वती सौभाग्य मंत्र
हे गौरी शंकरार्धांगि यथा त्वं शंकर प्रिया। तथा मां कुरु कल्याणी कांत कांता सुदुर्लभाम्।।
यह मंत्र सौभाग्यवती स्त्रियों का सुहाग अखंड रखता है और अविवाहित कन्याओं के शीघ्र विवाह का योग बनाता है। हरियाली तीज व्रत पूजा विधि सुबह उठ कर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करने के बाद मन में पूजा करने का संकल्प लें और ‘उमामहेश्वरसायुज्य सिद्धये हरितालिका व्रतमहं करिष्ये’ मंत्र का जाप करें पूजा शुरू करने से पूर्व काली मिट्टी से भगवान शिव और मां पार्वती तथा भगवान गणेश की मूर्ति बनाएं फिर थाली में सुहाग की सामग्रियों को सजा कर माता पार्वती को अर्पण करें ऐसा करने के बाद भगवान शिव को वस्त्र चढ़ाएं उसके बाद तीज की कथा सुने या पढ़ें


हरियाली तीज व्रत कथा यह एक पौराणिक कथा है कथा के अनुसार एक दिन भगवान शिव माता पार्वती को अपने मिलन की कथा सुनाते हैं वे बताते हैं पार्वती तुमने मुझे अपने पति रूप में पाने के लिए 107 बार जन्म लिया, किन्तु मुझे पति के रूप में पा न सकीं 108 वीं बार तुमने पर्वतराज हिमालय के घर जन्म लिया

शिवजी कहते हैं – पार्वती तुमने हिमालय पर मुझे वर के रूप में पाने के लिए घोर तप किया था इस दौरान तुमने अन्न-जल त्याग कर सूखे पत्ते चबाकर दिन व्यतीत किया। मौसम की परवाह किए बिना तुमने निरंतर तप किया तुम्हारी इस स्थिति को देखकर तुम्हारे पिता बहुत दुःखी और नाराज़ थे तुम वन में एक गुफा के भीतर मेरी आराधना में लीन थी

सावन तृतीय शुक्ल को तुमने रेत से एक शिवलिंग का निर्माण कर मेरी आराधना कि जिससे प्रसन्न होकर मैंने तुम्हारी मनोकामना पूर्ण की इसके बाद तुमने अपने पिता से कहा कि ‘पिताजी, मैंने अपने जीवन का लंबा समय भगवान शिव की तपस्या में बिताया है और भगवान शिव ने मेरी तपस्या से प्रसन्न होकर मुझे स्वीकार भी कर लिया है अब मैं आपके साथ एक ही शर्त पर चलूंगी कि आप मेरा विवाह भगवान शिव के साथ ही करेंगे पर्वतराज ने तुम्हारी इच्छा स्वीकार कर ली और तुम्हें घर वापस ले गये कुछ समय बाद उन्होंने पूरे विधि विधान के साथ हमारा विवाह किया

हे पार्वती! इस शुक्ल तृतीया को तुमने मेरी आराधना करके जो व्रत किया था, उसी के परिणाम स्वरूप हम दोनों का विवाह संभव हो सका इस व्रत का महत्त्व यह है कि इस व्रत को पूर्ण निष्ठा से करने वाली प्रत्येक स्त्री को मैं मन वांछित फल देता हूं भगवान शिव ने पार्वती जी से कहा कि इस व्रत को जो भी स्त्री पूर्ण श्रद्धा से करेंगी उसे तुम्हारी तरह अचल सुहाग की प्राप्ति होगी

सूर्य और शनि का समसप्तक योग 16 जुलाई से, 5 राशियों को रहना होगा संभलकर

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ज्योतिष : शास्त्र में सत्ता और सरकार का कारक माना गया है, यह मान-सम्मान के भी कारक ग्रह हैं। शनि को धीमी गति से चलने वाला और मेहनत करने वालों का कारक कहा गया है। 16 जुलाई दिन गुरुवार को सूर्य कर्क राशि में आ रहे हैं। शनि मकर राशि होंगे यानी दोनों ग्रह एक दूसरे से सातवें घर में होंगे। इससे दोनो ग्रहों की एक-दूसरे पर नजर रहेगी। इस स्थिति को ज्योतिष शास्त्र में समसप्तक योग बताया गया है। सूर्य पिता और शनि पुत्र हैं फिर भी दोनो में मित्रवत संबंध नहीं है। ऐसे में अगले एक महीने सूर्य शनि के बीच बनने वाले समसप्तक योग के दौरान किन-किन राशियों के लोगों को सतर्क और सावधान रहना होगा।

मिथुन राशि के लिए सूर्य-शनि का यह योग मिश्रित फलदायी होगा। अगले एक महीने मिथुन राशि के जातक अपने स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखें। बेवजह सरकार और अधिकारियों से वाद-विवाद की स्थिति बन सकती है इसलिए किसी भी तरह के विवाद से दूर रहें। फिजूल खर्चे बढ़ सकते हैं इसलिए आर्थिक संतुलन बनाकर चलें। हताशा की भावना मन में आ सकती है, जिसका गुस्सा घर के सदस्यों पर उतार सकते हैं। विरोधियों पर नजर रखें और धार्मिक कार्यों में भाग लें।

कर्क राशि के लिए सूर्य और शनि का समसप्तक योग जातक के नौकरी व व्यवसाय में परेशानी ला सकता है। सूर्य को कई बार क्रूर ग्रह कहा जाता है इसलिए आपके अंदर सुनने की क्षमता प्रभावित हो सकती है और आपको नुकसान हो सकता है। आप अपने मन को शांत रखें और सिर्फ अपने कार्य पर ध्यान दें। किसी भी तरह राजनीति आपको नुकसान पहुंचा सकती है। इस काल में आपको आर्थिक समस्या हो सकती है, जिससे आपकी कई कार्य अटक सकते हैं। आंखों पर ज्यादा तनाव ना डालें, अन्यथा आपको नुकसान हो सकता है।

सिंह राशि के लोगों के लिए अगले एक महीने तक अपनी योजनाओं को गोपनीय रखें। परिवार में वैचारिक भतभेद हो सकते हैं, जिससे घर का माहौल खराब हो सकता है। जीवनसाथी के साथ तालमेल बनाकर चलें अन्यथा नोक झोंक से मानसिक तनाव हो सकता है। कार्यक्षेत्र में आपको धैर्य रखने की जरूरत है, अन्यथा अभिमान में लिए गए फैसले आपको लिए नुकसानदायक हो सकते हैं। धन के लेन-देन से बचें।

मकर राशि के लिए इस समय आपके अंदर आत्मविश्वास की कमी आ सकती है। साथ ही कोई ऐसा कार्य ना करें, जिससे कानून का उलंघन हो। ऐसा करें तो आप अनावश्यक परेशानी में पड़ सकते हैं। साथ ही आप भावनाओं में किसी भी तरह के बड़े फैसले लेने से बचें और किसी भी तरह के खरीद-फरोख्त से बचें। इस समय कहीं भी निवेश ना करें। संतान की तरफ से आपके जीवन में कोई समस्या आ सकती है, जिससे आर्थिक व्यय होगा। आप अपने संसाधनों का सही से इस्तेमाल करें, जिससे आपको लाभ हो।


मीन राशि के लिए अगले एक महीने तक आप आर्थिक तौर पर असुरक्षित महसूस करेंगे। साथ ही जीवन में कई तरह के उतार-चढ़ाव देखने को मिलेंगे, जिससे विकास की प्रकिया धीमी हो जाएगी। इस समय आप किसी भी तरह के कर्ज लेने और देने से बचें। ससुराल पक्ष से मतभेद हो सकते हैं और दुर्घटना की आशंका बन रही है, कार्यक्षेत्र में बॉस और साथ काम करने वालों से उलझें नहीं, अन्यथा मानसिक तनाव हो सकता है। वाहन सावधानी पूर्वक चलाएं।

15 जुलाई 2020 का राशिफल: जाने कैसे रहेगा आपका आज का दिन

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मेष राशि

आज के दिन आप अपने कामकाज को बढ़ाने में सफल होंगे। कार्यक्षेत्र से जुड़ी कोई नई योजना बना सकते हैं। क्या न करें- आज किसी से वाद-विवाद न करें, वरना बनती हुई बात बिगड़ सकती है।
वृष राशि

आज समाज में मान-सम्मान मिलेगा। परिवार में सुख-शांति रहेगी। किसी शुभ कार्य के होने का संकेत भी सितारे दे रहे हैं। क्या न करें- आज धार्मिक कार्यों के प्रति अरुचि न दिखाएं।
मिथुन राशि

कारोबार क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिए आज का दिन अच्छा रहेगा। पिता और उच्च अधिकारियों का सहयोग मिलेगा। क्या न करें- शत्रु पक्ष को आज खुद पर हावी न होने दें।

कर्क राशि

आज आपका दिन अच्छा रहेगा। जीवनसाथी से संबंध थोड़े बेहतर होंगे। कपड़े से जुड़े कारोबार से संबंधित लोगों को अच्छा लाभ मिलने का योग है। क्या न करें- कोई भी जोखिम भरा कार्य आज ना करें।
सिंह राशि

आज आर्थिक स्थिति सामान्य रहेगी, धन की आवक बनी रहेगी, वहीं खर्च भी बढ़ सकते हैं। विशेष प्रयास करने पड़ेंगे। क्या न करें- आज विषम परिस्थितियों में भी साहस न खोएं।

कन्या राशि

आज आप कई बड़ी गलतफहमियों को दूर कर सकेंगे और नए वादे किए जाएंगे। मेहनत एवं अनुभव द्वारा कुछ नवीन स्थितियों को पाएंगे। क्या न करें- आज पैसे का निवेश न करें।

तुला राशि

आज आपकी सृजनात्मकता आपको अन्य साथियों से आगे ले जाएगी। खर्च की अधिकता रहेगी। प्रसन्न रहें। क्या न करें- आंखें बंद करके किसी पर विश्वास ना करें।

वृश्चिक राशि

आज अपनी बातों को बहुत प्रभावशाली ढंग से रखने में सफल होंगे। अचानक धन लाभ और धन हानि की संभावना बन रही है। क्या न करें- आज मन को अनियंत्रित न होने दें।

धनु राशि

आज का आपका दिन अच्छा रहेगा। घर-परिवार में कोई सुखद समाचार मिलेगा। पिता का सहयोग भी मिलेगा। इसलिए किसी तरह से निराश न हों। क्या न करें-किसी से न उलझें।

मकर राशि

आज का दिन प्रेम प्रसंग के लिए आपके लिए पूरी तरह से अनुकूल है। किसी से भी बहस करने से बचें। मनोरंजन के लिए समय जरूर निकालें। क्या न करें- आज बात का बतंगड़ न बनाएं।

कुंभ राशि

आज आपका पराक्रम और साहस खूब बढ़ा रहेगा। समाज में मान-सम्मान मिलेगा। परिवार में सुख-शांति रहेगी। क्या न करें-अपनी वाणी को कठोर न होने दें।

मीन राशि

आज आपके परिश्रम को उचित सम्मान मिलेगा एवं नई जिम्मेदारी का भार भी आपके कंधों पर डाला जाएगा। आप इस जिम्मेदारी का निर्वहन अच्छी तरह से करेंगे। क्या न करें- खान-पान को असंयमित न होने दें।

16 जुलाई 2020 का राशिफल: जाने कैसे रहेगा आपका आज का दिन

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मेष राशि

आज का दिन आपके लिए बेहद लाभदायक साबित होने वाला है। व्यवसाय करने वालों के लिए दिन अनुकूल रहेगा। क्या न करें- आज किसी पर भी आंखें बंद कर भरोसा न करें।
वृष राशि

आज का दिन आपके लिए बेहद लाभदायक साबित होने वाला है। व्यवसाआज शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहेंगे। दिनभर मनोरंजक प्रवृत्ति में आप व्यस्त रहेंगे। क्या न करें- आज किसी बड़े निवेश विशेषकर जमीन जायदाद पर जल्दबाजी में फैसला न लें।
मिथुन राशि

आज के दिन आपके साथ व्यापार वृद्धि के योग हैं। ब्याज, कमीशन में से मिलने वाले पैसे आपके भंडार में वृद्धि करेंगे। क्या न करें- आज अपने स्वास्थ्य के प्रति असावधानी न बरतें।

कर्क राशि

आज प्रेमियों के लिए बेहतर दिन है। विजातीय आकर्षण रहेगा। क्या न करें- आज मित्रों से किसी भी प्रकार का विवाद न करें, अन्यथा नुकसान हो सकता है। किसी से अपशब्द न बोलें।
सिंह राशि

आज के दिन धार्मिक कार्यों में मन लगेगा और भाग्योदय के प्रसंग भी बनेंगे। क्या न करें- आज बड़ा निवेश करने से बचें, साथ ही पैसों की सुरक्षा को लेकर ज्यादा चिंता न करें।

कन्या राशि

आज के दिन शिक्षा क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिए असीम लाभ का योग है। इसके अलावा विविध क्षेत्रों में भी लाभ की संभावनाए हैं। क्या न करें- आज भागीदारी के कार्य में उग्रता से बचें।

तुला राशि

आज के दिन उच्च अधिकारियों को आपके कार्य से प्रसन्नता हो सकती है और वे आपको आगे बढऩे के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं। क्या न करें- आज किसी व्यक्ति की जमानत न लें।

वृश्चिक राशि

आज के दिन प्रेमीजन एक दूसरे का सानिध्य पा सकेंगे। आपके स्वभाव में ज्यादा भावुकता रहेगी। क्या न करें- दूसरों के निजी मामलों में आज दखल न दें, वरना नुकसान होना संभव है।

धनु राशि

तन एवं मन से आप प्रफुल्लता का अनुभव करेंगे। परिवार का माहौल सुख-शांति से भरा रहेगा। क्या न करें- आज शीघ्र पैसा बनाने के तरीकों पर बिना सोच-विचार के कोई कदम न उठाएं।

मकर राशि

आज आज का दिन विद्यार्थियों के लिए अच्छा है। अभ्यास में भी खूब सफलता मिलेगी। क्या न करें- आज हर प्रकार की मानसिक चिंताओं से दूरी बनाकर रखें। इन्हें बेवजह खुद पर हावी न होने दें।

कुंभ राशि

आज आपका पराक्रम और साहस खूब बढ़ा रहेगा। समाज में मान-सम्मान मिलेगा। परिवार में आज शारीरिक स्वास्थ्य अच्छा नहीं रहेगा, परंतु दोपहर के बाद घर में आनंद और शांति का वातावरण बन जाएगा। क्या न करें- आज किसी उल्टे-सीधे कामों का हिस्सा न बनें।

मीन राशि

आज के दिन कार्यक्षेत्र में सम्मान मिलेगा। परिवारजनों के साथ समय आनंदपूर्वक बिताएंगे। क्या न करें- आज बड़े-बुजुर्गों की सलाह लिए बिना कोई पारिवारिक निर्णय न लें।

सुबह उठते ही पहले ढूंढते हैं फोन तो इन बातों का रखें खास ध्यान

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आज के समय में फोन और सोशल मीडिया के बिना रहना नामुमकिन सा हो गया है। कुछ लोग तो ऐसे भी हैं जो सुबह उठते ही सबसे पहले मोबाइल फोन को ढूंढते है। आपके आस-पास ही आपको ऐसे बहुत सारे लोग मिल जाएंगे। अगर आप भी यही कुछ कर रहे हैं तो जरा सावधान हो जाए क्योंकि एक रिसर्च के अनुसार, 80 प्रतिशत लोग सुबह उठने के बाद अपना फोन देखना पसंद करते है या यूं कहे कि ये लोग अपने फोन के साथ चिपक जाते है।

इसके साथ ही उठने के सिर्फ 15 मिनट के अंदर ही 5 में से 4 लोग अपने फोन को चेक करते है। मगर ऐसा करना उनकी शारीरिक और मानसिक सेहत पर अपना गहरा और बुरा असर डालता है ऐसे लोगों को हैल्थ से जुड़ी कई समस्याओं का सामना करना पड़ता तो चलिए आपको बताते हैं इसके बारे में विस्तार से…

स्वभाव में चिड़चिड़ापन

फोन को जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल करने से दिल और दिमाग में अलग-अलग चीजें घूमती है। ऐसे में बिहेव में बदलाव आने लगता है। व्यक्ति गुस्सा, चिड़चिड़ा बर्ताव करने लगता है। इसके अलावा अजीब व भयानक चीजें देखने पर बहुत से लोगों में डर पैदा होने लगता है।

तनाव में आना

जो लोग ऐसा करते हैं वो ज्यादा स्ट्रेस यानि कि तनाव में रहते हैं। बार-बार फोन स्क्रीन को स्क्रोल कर चेक करना कि कल क्या किया था आज क्या करना है। ऐसे लोगों के मन में काम को पूरा करने के प्रति डर और चिंता होने लगती है। ऐसे होने पर ऐसे लोगों की सुबह के समय में ही शरीर की ऊर्जा कम होने लगती है। थकान व सुस्ती महसूस होने लगती है। साथ ही एकाग्रता शक्ति कम हो तनाव बढऩे लगता है।

मोटापा व आंखों को नुकसान

घंटों फोन में आंखे घुसाए रहने से आंखों को पूरा आराम नहीं मिल पाता नतीजा आंखें कमजोर होने लगती हैंवहीं 1 जगह घंटों बैठे रहने से मोटापा बढ़ता है।

एकाग्रता में कमी

फोन को बहुत ज्यादा इस्तेमाल करने वाले लोगों की एकाग्रता शक्ति में कमी आने लगती है। असल में, आप जब भी फोन को ओपन करते हो इस पर एक ही पल में न जाने कितने मैसेज, कॉल, खबरे आने लगती है। इसे देख और पढ़कर सीधा दिमाग पर असर होता है। कभी-कभी तो इसके कारण चक्कर भी आने लगते है। ऐसे में अपनी चीजों व जरूरी कामों से ध्यान बंट जाता है।

इन बातों का रखें खास ध्यान

  • ऐसा जरूरी नहीं कि फोन से हर बार अच्छी और खुशभरी ही खबर मिले। बहुत बार ये तनाव और टेंशन को बढ़ाने का भी काम करता है। इसलिए सुबह उठते ही इसे देखने की आदत को बदलें।
  • रोजाना सुबह उठने के बाद गर्म पानी का सेवन करें।
  • 30 मिनट के लिए अपने फोन से दूर हो खुली हवा में समय बिताएं। आप इस दौरान योगा या मेडिटेशन भी कर सकते है। इससे तनाव कम हो मन अंदर से खुश होगा।
  • फोन को छोड़ फैमिली के साथ समय बिताएं।
  • सोने के 30 मिनट पहले ही फोन को अलग रख दें। हो सके तो इसे साइलेंट पर करके ही सोएं।

20 जुलाई को है सावन माह की अमावस्या, शिव-पार्वती के साथ पितर देवता की पूजा करने का शुभ दिन

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ज्योतिष : शास्त्र के अनुसार इस वर्ष 20 जुलाई को सावन माह की अमावस्या है, इसे हरियाली अमावस्या कहा जाता है। इस बार सोमवार को ये शुभ तिथि होने से इसका महत्व और अधिक बढ़ गया है। इस अमावस्या पर शिवजी के साथ ही देवी पार्वती, गणेशजी, कार्तिकेय स्वामी और नंदी का विशेष पूजन अवश्य करें। पूजा में ऊँ उमामहेश्वराय नम: मंत्र का जाप करें। माता को सुहाग का सामान चढ़ाएं।

शिवलिंग पर पंचामृत अर्पित करें। पंचामृत दूध, दही, घी, शहद और मिश्री मिलाकर बनाना चाहिए। अमावस्या तिथि पर घर के मृत सदस्यों के लिए तर्पण, श्राद्ध कर्म करने की परंपरा है। परिवार के मृत सदस्यों को ही पितर देवता कहा गया है।

अमावस्या तिथि की दोपहर में पितरों के लिए धूप-ध्यान करना चाहिए। गाय के गोबर से बना कंडा जलाएं और उस पर पितरों का ध्यान करते हुए गुड़-घी अर्पित करें।

सावन माह की ये तिथि प्रकृति को समर्पित है। इस दिन प्रकृति को हरा बनाए रखने के लिए पौधा लगाना चाहिए। किसी मंदिर में या किसी सार्वजनिक स्थान पर छायादार या फलदार वृक्ष का पौधा लगाएं। साथ ही, इस पौधे का बड़े होने तक ध्यान रखने का संकल्प भी लें।

जीवन साथी के सौभाग्य और अच्छे स्वास्थ्य के लिए महिलाएं व्रत करती हैं। हरियाली अमावस्या पर मां पार्वती की पूजा करने से कुंवारी कन्याओं को मनचाहा वर मिल सकता है। विवाहित महिलाएं भी इस तिथि पर व्रत करती हैं और देवी मां की पूजा करती है।

3 अगस्त 2020 को मनाया जायेगा रक्षाबंधन, सुबह 9:28 से रात 21:14 तक शुभ मुहूर्त

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जीवनशैली : इस वर्ष यानि 2020 में रक्षाबंधन का त्यौहार तीन अगस्त 2020 को मनाया जाएगा। रक्षाबंधन के दिन राखी बांधने का शुभ मुहूर्त सुबह 9:28 बजे से रात 21:14 बजे तक है। लेकिन राखी बांधने के दोपहर 13:46 बजे से शाम 16:26 तक सबसे अधिक उपयुक्त समय है। इस दौरान प्रदोष काल का मुहूर्त शाम 19:06 बजे से रात 21:14 बजे तक है। तथा पूर्णिमा तिथि का आरंभ दो अगस्त को रात्रि 21:28 बजे से होगा। और पूर्णिमा तिथि का समापन तीन अगस्त की रात्रि को 21:27 बजे होगा।

रक्षा बंधन के दिन भाई अपनी बहनों को भी कई प्रकार के गिफ्ट देते हैं। जिनमें आभूषण, कपड़े या अन्य वस्तुएं शामिल होती हैं। धर्म शास्त्रों में बताया गया है कि भाई द्वारा अपनी बहनों को समय-समय पर गिफ्ट आदि देते रहना चाहिए। आज के समय में रक्षाबंधन पर्व बहन-भाई के प्यार का प्रतीक बन चुका है। या ऐसा कहा जा सकता है कि यह त्यौहार भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को और गहरा करने वाला त्यौहार है।

एक ओर भाई अपनी बहन के प्रति अपने दायित्व निभाने का वचन बहन को देता है, तो दूसरी ओर बहन भी भाई की लंबी उम्र के लिए व्रत रखकर और रक्षा सूत्र भाई की कलाई में बांधती है। इस दिन भाई की कलाई पर जो राखी बहन बांधती है वह सिर्फ रेशम की डोर या धागा मात्र नहीं होती बल्कि वह बहन-भाई के अटूट और पवित्र प्रेम का बंधन और रक्षा पोटली जैसी शक्ति भी उस साधारण से नजर आने वाले धागे में समहित होती है।

प्राचीन समय में देवताओं और राक्षसों में लगातार 12 साल तक युद्ध होता रहा। जिसके बाद राक्षसों ने देवताओं का हरा दिया और स्वर्ग समेत तीनों लोकों को अपने अधीन कर लिया। राक्षसों से हारने के बाद देवराज इंद्र देवताओं के गुरु बृहस्पति के पास के गए और सलाह मांगी। गुरु बृहस्पति ने इंद्र को मंत्रोच्चारण के साथ रक्षा विधान करने को कहा। सावन माह की पूर्णिमा के दिन गुरू बृहस्पति ने रक्षा विधान संस्कार आरंभ किया।

इस रक्षा विधान के दौरान मंत्रोच्चारण से रक्षा पोटली को मजबूत किया गया। पूजन के बाद इस पोटली को देवराज इंद्र की पत्नी शचि को दे दिया। इंद्र की पत्नी जिन्हें इंद्राणी भी कहा जाता है उन्होंने इस रक्षा पोटली को देवराज इंद्र के दाहिने हाथ पर बांधा। ऐसा बताया जाता है कि इस रक्षा पोटली की ताकत से ही देवराज इंद्र राक्षसों को हराने में कामयाब हुए और अपना खोया स्वर्ग लोक फिर से प्राप्त किया।


श्रावण मास में पड़ रहा है नाग पंचमी, शिवरात्रि, हरियाली तीज और रक्षाबंधन

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1991 के बाद रक्षाबंधन पर बन रहा विशेष संयोग

ज्योतिष : श्रावण माह में हर दिन, और खासतौर पर सोमवार को भक्त भगवान शिव की आराधना करते हैं और उन्हें प्रसन्न कर कृपा हासिल करने की कोशिश करते हैं। इन पूरे महीने लोग शिव भक्ति में डूबे रहते हैं। सावन माह में शिवजी की पूजा के साथ ही कुछ अन्य महत्वपूर्ण त्योहार भी आते हैं। इसी दौरान नाग पंचमी, शिव रात्रि, हरियाली तीज, पुत्रदा एकादशी और रक्षाबंधन मनाए जाते हैं। सावन की समाप्ति रक्षाबंधन के साथ होती है। जानिए इस बार ये प्रमुख त्योहार कब आ रहे हैं—

19 जुलाई, रविवार सावन शिव रात्रि : श्रावण माह के सबसे महत्वपूर्ण त्योहार में से एक सावन शिव रात्रि इस बार 19 जुलाई, रविवार को है। इस दिन महादेव के साथ देवी पार्वती की पूजा की जाती है।

20 जुलाई, सोमवार हरियाली अमावस्या : श्रावण मास की कृष्णपक्ष अमावस्या को हरियाली अमावस्या के रूप में मनाया जाता है। खास बात यह है कि इस बार हरियाली और सोमवती अमावस्या एक ही दिन 20 जुलाई को मनाई जाएगी। पंडितों के अनुसार, इस बार अमावस्या तिथि 19 जुलाई की रात्रि 12 बजकर 9 मिनट से आरंभ होगी और 20 जुलाई की रात्रि 11 बजकर 2 मिनट तक रहेगी।
23 जुलाई, गुरुवार हरियाली तीज : सुहागिन महिलाओं के लिए शुभ माना जाने वाला हरियाली तीज त्योहार 23 जुलाई, गुरुवार को है। महिलाएं सोलह श्रृंगार कर अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं। गीत गाए जाते हैं। पौधारोपण किया जाता है।

25 जुलाई, शनिवार नाग पंचमी : 25 जुलाई, शनिवार को देशभर में नाग देवता की पूजा की जाएगी। लोग सांपों को दूध पिलाते हैं। वहीं कुछ लोग सपेरों के चंगुल से नाग देवता को छुड़ाकर जंगल में छोड़ देते हैं।

30 जुलाई, बुधवार पुत्रदा एकादशी : सावन माह की इस एकादशी को पुत्रका एकादशी भी कहा जाता है। यह एकादशी 30 जुलाई, बुधवार को है। महिलाएं पुत्र प्राप्ति के लिए इस दिन व्रत रखती हैं और भगवान शिव की आराधना करती हैं।

3 अगस्त सोमवार रक्षाबंधन : भाई-बहन के प्यार का त्योरार रक्षाबंध 3 अगस्त (सोमवार) को मनाया जाएगा। 1991 के बाद यह पहला मौका है जब रक्षाबंधन पर विशेष संयोग बन रहा है। पूर्णिमा तिथि पर सूर्य, शनि के सप्तक योग, प्रीति योग, आयुष्मान योग, सर्वार्थ सिद्धि योग, सोमवती पूर्णिमा, मकर राशि का चंद्रमा, श्रवण नक्षत्र, उत्तराषाढ़ा नक्षत्र, आखिरी सोमवार के दिन रक्षाबंधन मनाया जाएगा।

अतुल्य काशी दर्शन-अविस्मरणीय है घाटों का शहर वाराणसी

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अमरेंद्र प्रताप सिंह

यहां हम आपको कुछ घाटों के बारे में बता रहें हैं जो वाराणसी के समृद्ध इतिहास और संस्कृति का प्रतीक हैं।

काशी या बनारस नाम से विख्यात, वाराणसी आध्यात्मिक ज्ञान और बेहतरीन दृश्यों के लिए तो जाना जाता है साथ ही साथ यह शहर दुनिया भर से हज़ारों हिंदु तीर्थयात्रियों को अपनी ओर आकर्षित भी करता है। बनारस एक ऐसा शहर है जिसकी न जाने कितनी कहानियां हैं, गंगा नदी किनारे बसे 100 से अधिक घाट की बहती हवा इस आध्यात्मिक शहर से होकर गुजरती है।

यहां हम आपको कुछ घाटों के बारे में बता रहें हैं जो वाराणसी के समृद्ध इतिहास और संस्कृति का प्रतीक हैं।

ऐतिहासिक दशाश्वमेध घाट

सबसे पुराने और सबसे महत्वपूर्ण घाटों में एक दशाश्वमेध घाट वाराणसी के सबसे ओजस्वी घाटों में से एक है। इस घाट को लेकर दो हिंदु पौराणिक कथाएं प्रचलित है, पहला कि इस घाट का निर्माण भगवान ब्रह्मा ने भगवान शिव के स्वागत के लिए करवाया था।

दूसरी पौराणिक कथा है कि यहां यज्ञ के दौरान 10 घोड़ों की बलि दी गई थी। संध्याकाल में गंगा आरती के दौरान दशाश्वमेध घाट जीवंत हो उठता है। भगवा रंग के परिधान को धारण किए युवा पंडितों द्वारा प्रस्तुति और गंगा आरती एक विस्तृत समारोह के रूप में होता है।

  • जो पूजा, नृत्य और अग्नि (आग) के साथ समाप्त की जाती है।
  • नदी किनारे जलती दीपक की रोशनी और चंदन की महक घाट को ढक लेती है।
  • घाट के नज़दीक स्थित जयपुर के महाराजा जयसिंह द्वारा बनवाया गई वेधशाला जंतर-मंतर का नज़ारा भी दिखाई देता है।

प्रयाग घाट

दिन रात पूजा-अर्चना करने आने वाले श्रद्धालुओं से भरा रहने वाला प्रयाग घाट वाराणसी के महत्वपूर्ण घाटों में से एक है। दशाश्वमेध घाट के ठीक बाईं ओर स्थित इस घाट का निर्माण सन 1778 में बालाजी बाजीराव ने करवाया था।

  •  यह इलाहाबाद के पवित्र शहर प्रयाग का प्रतिरुप है।
  • यहां ज्योतिषी रतन छाते के नीचे बैठकर आए हुए तीर्थयात्रियों के भाग्य पढ़ते हैं।

अस्सी घाट

गंगा और अस्सी नदी के संगम पर स्थित अस्सी घाट वाराणसी के सबसे दक्षिण में स्थित घाटों में से एक है। श्रद्धालु यहां शिवलिंग के रुप में भगवान शिव की पूजा से पहले स्नान करते हैं।

  1. यह वो स्थान है जहां लंबे समय के लिए आए शोद्यार्थी, विदेशी छात्र और पर्यटक आते हैं।
  2. यह वही अस्सी घाट है जहां मशहूर भारतीय कवि तुलसी दास जी ने रामचरितमानस जैसे ग्रंथ की रचना की थी।
  3. इस घाट पर शिवरात्रि जैसे बड़े त्योहारों पर लगभग 22,000 लोग समायोजित हो सकते हैं।
  4. यहां प्रत्येक शाम 7 बजे आरती का आयोजन किया जाता है।
  5. कई श्रद्धालु इस आरती को इसे देखने के लिए नौका को प्राथमिकता देते हैं।

मणिकर्णिंका घाट

वाराणसी शहर के सबसे अनोखे पहलुओं में से एक है मणिकर्णिका घाट पर स्थित अंतिम संस्कार की जगह जो शहर के भीतर और पवित्र मंदिरों के पास स्थित है। कतार में रखी लकड़ियों के ढेर और आग की धारा में लगातार जलते शव, प्रत्येक शवों को कपड़े में लपेट कर एक अस्थायी स्ट्रेचर पर गलियों से लाया जाता है।

ऐसे कहा जाता है कि एक बार भगवान शिव नें भगवान विष्णु को एक वरदान दिया। जिसमें उन्होंने कहा था कि जिसकी मृत्यु काशी में होगी वह जन्म और मृत्यु के अंतहीन चक्र से मुक्त हो जाएगा और उसकी आत्मा भी मुक्त हो जाएगी।

काफी पुराना है टिड्डीदल की विनाशलीलाओं का इतिहास

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अमरेंद्र प्रताप सिंह
वरिष्ठ पत्रकार

विश्व के साठ देश बन चुके हैं शिकार, एक झुंड में होती हैं चार से आठ करोड़ टिड्डियां

लखनऊ, 19 जुलाई, (अमरेंद्र प्रताप सिंह): बीते कुछ माह से टिड्डियों के दल का आक्रमण समाचार की सुर्खियों में है जो शायद युवा पीढ़ी के लिये कोविड-19 की तरह ही एक नया अनुभव हो सकता है। परन्तु टिड्डी दल की विनाशलीलायें भारत, चीन, मिश्र, यूनान, अरब आदि देशों के प्राचीन इतिहास में दर्ज है। अब तक विश्व के तकरीबन साठ देश टिड्डियों के आक्रमण से प्रभावित हो चुके है।

बीसवी शताब्दी के बाद अब एक बार फिर टिड्डियों के आक्रमण ने इतिहास में देखने को मजबूर कर दिया है। दो से तीन ग्राम का टिड्डी कीट हमारे लिये खाद्य उत्पादों का बड़ा संकट उत्पन्न कर सकता है। टिड्डियों के एक झुंड में चार से आठ करोड़ टिड्डियां हो सकती है। जो एक दिन में दो हजार लोगों को भोजन चट करने में सक्षम है। हवा के बहाव के साथ एक दिन में बीस से तीन सौ मील तक की दूरी तय करने की क्षमता इनकों कही भी पहुंचा सकती है। अपने आठ सप्ताह के जीवन काल में एक से एक सौ होने की प्रजनन क्षमता किसी भी देश की कृषि व्यवस्था को चौपट करने के लिये काफी है।

टिड्डीदल से निपटने का अबतक नहीं मिला कोई प्रभावी तरीका

आंचलिक विज्ञान नगरी, लखनऊ के वरिष्ठ विज्ञान अधिकारी रामकुमार और विज्ञान अधिकारी विकास पिछले काफी समय से टिड्डियों पर अध्ययन कर रहे है। उनके अनुसार कीटनाशकों का प्रयोग फसल के साथ-साथ मृदा के गुणधर्म को भी खराब करता है। इसी प्रकार पचास के दशक में आर्गेनों क्लोराइड डाइड्रिन नामक प्रभावशाली कीटनाशक का प्रयोग किया गया परन्तु खाद्य श्रंखला में इसके दुष्परिणामों को देखते हुये इसे प्रतिबन्धित कर दिया गया। हालांकि इनसे निपटने के लिये कोई विश्वसनीय तरीका नहीं खोजा जा सका है। परन्तु इनके नियंत्रण को प्रभावी बनाने के लिये जीपीएस, जीआईएस उपकरण और उपग्रह जैसी आधुनिक तकनीकों  से प्रभावित क्षेत्र और संभावित आक्रमण क्षेत्रों को आंकलन किया जा सकता है।

जैव नियन्त्रक निभा सकते हैं टिड्डियों के नियन्त्रण में अहम भूमिका

वरिष्ठ विज्ञान अधिकारी रामकुमार के अनुसार जैव नियन्त्रक टिड्डियों के नियन्त्रण में अहम भूमिका निभा सकते है। दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है के आधार पर वर्ष 2009 में तंजानियां में इनके प्रजनन क्षेत्रों में मेथेरिजियम एरीडियम के सूखे कवक के बीजाणुओं को छिडक़ा गया था। कवक बिजाणुओं ने टिड्डियों के बाहरी आवरण को क्षतिग्रस्त करके शरीर की गुहा को नष्ट कर दिया जिससे इनकी मृत्यु हो गयीं। इस तरह के जैव नियन्त्रकों से खाद्य श्रंखला को भी कोई नुकसान नहीं होता है साथ ही इनका प्रयोग कीटनाशकों की तरह बार-बार नहीं करना पड़ता है। आज वैज्ञानिक जैव-नियंत्रकों के अन्य विकल्प भी खोजने में लगे हुये है। विज्ञान अधिकारी विकास ने बताया कि पूरे विश्व में इस कीट की छ: प्रताजियां है जो उत्तरी गोलार्ध अक्षांश 20 से 40 एवं दक्षिणी गोलार्ध के 15 से 45 के मध्य पाये जाते है।

मछलियों और मुर्गियों के आहार का विकल्प हो सकती है टिड्डियां

टिड्डियों का प्रजनन काल वर्षा काल में होता है। मादा लगभग एक हजार तक अंडे देती है। जब तक क्षेत्र में खाने के लिये वनस्पति होती है तब तक ये वहां रहते है। तादाद बढऩे पर भोजन की तलाश में पलायन कर जाती है। पाकिस्तान से आये इस टिडडी दल से भारत के अनेक इलाके प्रभावित हो रहे है। आधुनिक तकनीक की सहायता से भारत सरकार प्रत्येक राज्य व जिलों में इनके आक्रमण से बचने के लिये अलर्ट जारी कर रही है। सवा चार सौ से अधिक दल प्रत्येक राज्य और जिलों में टिड्डियों के आक्रमण से निपटने के लिये तैनात है। टिड्डियां चावल, मक्का और बाजरा की फसलों के लिये विनाशकारी है। यदि भविष्य में टिड्डी दल को पकड़ने का कोई तरीका खोजने में  सफलता मिलती है तो इसका उपयोग मछली पालन और कुक्कुट पालन में पौष्टिक आहार या चारे के रूप में करने की अपार संभावना है। वैसे भी अफ्रीकी, मध्य पूर्वी और एशियाई देशों में टिड्डी को बड़े चाव से खाया भी जाता है।

सृजनात्मकता, डिजिटलीकरण और बच्चे

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सर्वेश कुमार मौर्य

स्तम्भ: हाल ही में जयपुर जे के लोन चिल्ड्रेन्स हॉस्पिटल के डॉक्टरों ने एक सर्वे किया। 25 मार्च से लेकर मई माह के अंत तक के लॉकडाउन पर आधारित इस सर्वे में लॉकडाउन के दौरान बच्चों के जीवन व व्यवहार में आए बदलावों का अध्ययन किया गया। इस सर्वे में पाया गया कि लॉकडाउन ने बच्चों के जीवन-व्यवहार को बदल दिया है। इस परिघटना ने उनके शारीरिक, मानसिक व भावनात्मक स्वास्थ्य को खासा प्रभावित किया है।

सर्वे में पाया गया कि लॉकडाउन के दौरान बच्चों में इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के प्रयोग में लत की हद तक भारी वृद्धि हुई है। 01 जून से लेकर 15 जून तक चले इस ऑनलाइन सर्वे में कुल 203 सैम्पल लिए गए थे। इसमें जयपुर, जोधपुर, उदयपुर, भीलवाड़ा, अजमेर, अलवर, कोटा, गंगानगर, सीकर, चुरू, नागौर और भरतपुर को राजस्थान राज्य से शामिल किया गया और अन्य राज्यों में दिल्ली, दिल्ली एनसीआर, कोलकाता, मुंबई, आगरा, चंडीगढ़ और लखनऊ को शामिल किया गया। इस सर्वे के परिणाम कई मायने में चौंकाने वाले, चिंताजनक व महत्वपूर्ण हैं।

सर्वे में पाया गया कि 65 प्रतिशत बच्चे लॉकडाउन के दौरान इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के आदी बन गए हैं और 50 प्रतिशत बच्चे तो आधे घंटे के लिए भी इन उपकरणों को छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं। इस लत से उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। बच्चे इनके प्रयोग से ज्यादा जिद्दी और चिड़चिड़े हो गए हैं। उनकी भाषिक कुशलता, आलोचनात्मक शक्ति और विश्लेषणात्मक क्षमता तेजी से घटी है। दो तिहाई अभिभावकों ने माना कि उन्होंने लॉकडाउन के दौरान अपने बच्चों के जीवन-व्यवहार में भारी बदलाव देखे हैं। ज्यादातर बच्चों में अनिद्रा, थकान, सरदर्द, चिड़चिड़ापन, मोटापा व कमरदर्द आदि की शिकायतें बढ़ी हैं।

45 प्रतिशत बच्चों में अनिद्रा की भयंकर शिकायतें देखी गई। 07 प्रतिशत बच्चों में सोने के वक्त बिस्तर में चिड़चिड़ापन महसूस किया गया। 32 प्रतिशत बच्चे अपने गुस्से को काबू कर पाने में अक्षम देखे गए। 33 प्रतिशत अभिभावकों ने कहा कि उन्होंने अपने बच्चों में ऑनलाइन क्लासेस से किसी भी किस्म का इंप्रूवमेंट नहीं देखा। 19 प्रतिशत का कहना था कि इस किस्म की ऑनलाइन क्लासेस का स्तर पहले की स्कूली क्लासरूम वाली शिक्षण पद्धति के मुकाबले काफ़ी नीचे था।

38 प्रतिशत अभिभावकों ने कहा कि उन्होंने अपने बच्चों के लिए ऑनलाइन क्लासेज अटेंड करने के लिए नए इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की खरीद की, जिससे उन पर अतिरिक्त आर्थिक भार पड़ा। सर्वे में यह भी पाया गया कि 50 प्रतिशत स्कूल एकांगी तरीके से पहले से रिकॉर्ड किए गए या पुरातन अध्यापन पद्धति, जिसमें सिर्फ अध्यापक ही बोलते रहते हैं, से लाइव आकर ऑनलाइन क्लासेज चला रहे हैं। 83 प्रतिशत अभिभावकों ने माना कि अपने बच्चों को ऑनलाइन क्लासेज के दौरान उन्होंने खुद सुपरवाइज किया।इस पद्धति में मोबाइल फोन सबसे पसंदीदा माध्यम बनकर उभरा है, जिस पर बच्चे एक घंटे से लेकर आठ घंटे तक शिक्षण प्रशिक्षण के नाम बिता रहे हैं। 

इन सारी स्थितियों के बाद भी दिलचस्प व चौंकाने वाला तथ्य यह है कि 92 प्रतिशत अभिभावकों ने ऑनलाइन क्लासेज के लिए सहर्ष सहमति दी है। अभिभावकों को दुष्प्रभावों के बाद भी यह माध्यम आकर्षित करता है, बेहतर लगता है। कहीं ऐसा तो नहीं कि जो ख़ूबसूरत इमेजिंग रातों-दिन चौबीसों घंटे जनमाध्यमों द्वारा की जा रही है, उसकी चमक दमक उनकी समझ पर भारी पड़ रही है। इस सर्वे में विशेष रूप से यह कहा गया कि अभिभावकों और नीति निर्धारकों को इस बारे में ध्यान देना चाहिए कि कैसे बच्चों को बढ़ती हुई इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की लत से बचाया जाए व ई-लर्निंग को संतुलित किया जाय?

यह भी जोर देकर कहा गया कि ई-लर्निंग परंपरागत पद्धति का विकल्प नहीं हो सकती। (देखें-हिंदुस्तान टाइम्स, 16 जून 2020 की उर्वशी देव रावल की रिपोर्ट) इस रिपोर्ट पर किंचित विस्तार से बात करने का कारण इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के प्रयोग से उपजे दुष्प्रभाव व ई-लर्निग की ओर जाने की सनक की हद तक की ललक से उपजी हाहाकारी गंभीरता है, जिस पर ध्यान देना बहुत जरुरी है। यदि इसे नजरंदाज किया गया तो इसके दूरगामी दुष्प्रभाव होंगे।

यह भी उल्लेखनीय तथ्य है कि शिक्षा का यह डिजिटलीकरण राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 और प्रस्तावित नई शिक्षा नीति के दिशानिर्देशों के भी विपरीत है। प्रस्तावित नई शिक्षा नीति राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 को बेहतर रचनात्मक किस्म के सीखने को सुनिश्चित करने के लिए बेहतरीन नीतियों को रेखांकित करने वाला दस्तावेज़ मानती है, जिसकी प्रासंगिकता आज के समय में भी है। यह बताना इसलिए बेहद जरुरी है क्योंकि कुछ विद्वजन यह सवाल उठा सकते हैं कि पंदह वर्ष पुराने दस्तावेज़ का आज के समय में क्या महत्व? इसलिए यह जान लेना ठीक होगा कि यह दस्तावेज़ आज और प्रासंगिक हो गया है, उसमें बताये गए शैक्षिक लक्ष्य आज भी परिणति का इंतजार कर रहे हैं।

राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 बच्चों के सीखने के संदर्भ में स्कूल को बाहर के जीवन से जोड़ने, पढ़ाई को रटंत प्रणाली से मुक्त करने, पाठ्यपुस्तक केंद्रित शिक्षा के बजाय गतिविधि आधारित सहभागी शिक्षण पर जोर देती है, जहाँ अध्यापक ज्ञान का स्रोत नहीं बल्कि ज्ञान प्राप्ति में सुगमकर्ता, सहायक की भूमिका में होता है, जो ज्ञात से अज्ञात की ओर, मूर्त से अमूर्त की ओर, स्थानीय से वैश्विक की ओर जाने का मार्ग प्रशस्त करता है। बच्चों के सीखने के संदर्भ में कहा गया है- बच्चे आसपास की दुनिया से बहुत सक्रिय रूप से जुड़े रहते हैं, वह खोजबीन करते हैं, प्रतिक्रिया करते हैं, चीजों के साथ कार्य करते हैं, चीजें बनाते हैं और अर्थ ग्रहण करते हैं।

लेकिन यह दुखद सत्य है कि आज भी हमारे शिक्षक सीमित पाठ योजना पर आधारित हैं जिनका लक्ष्य हमेशा परिमेय आचरणों को हासिल करना होता है। इस दृष्टिकोण में बच्चों को गीली मिटटी का लोंदा माना जाता है जिसे अध्यापक जैसा चाहे वैसा बना सकता है। हमारे अधिकांश अध्यापक इसी खुदाई दृष्टिकोण से आज भी परिचालित हैं। इस किस्म की पद्धति में वांक्षित परिणामों पर बहुत जोर दिया जाता है।

इसका दुष्परिणाम यह हुआ है जहाँ अध्यापन में भावनाओं एवं अनुभव को कक्षा में एक निश्चित और महत्वपूर्ण जगह मिलनी चाहिए थी, जहाँ सहभागिता को एक सशक्त कार्यनीति बनाया जाना था, जहाँ बच्चों की सृजनात्मकता को उभरा जाना था, जहाँ शिक्षा को मौजूदा महत्वाकांक्षाओं व जरूरतों के साथ शाश्वत मूल्यों तथा समाज के तात्कालिक सरोकारों के साथ वृहद मानवीय आदर्शों को पूरा करना था, वहां इसे महज खानापूर्ति, कर्मकांड बना दिया गया है।

जहाँ प्रस्तावित नई शिक्षा नीति और राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 बच्चे की सृजनात्मकता और मौलिकता की वकालत करती है इसके एकदम उलट शिक्षा के डिजिटलीकरण की कवायद तात्कालिकता से ग्रस्त निहायत, अगंभीर, असृजनात्मकता को बढ़ाने वाला फैसला जान पड़ती है। यह नीति भविष्य में रचनात्मकता के बजाय रटनात्मकता को बढ़ावा देनी वाली है। यदि इसे महामारी के दौर में उपजी जरुरत के रूप में देखा जा रहा है तो इससे किसी को भी कोई खास दिक्कत नहीं होनी चाहिए लेकिन जब इसे दीर्घकालिक निर्णय या आने वाले समय में एकमात्र बेहतर विकल्प के रूप में देखा जा रहा है तो यह चिंताजनक है।

ऐसे में जब ढेर सारे विद्वान, चिन्तक, विचारक इसमें संभावनाएँ देखने के बाद भी सीमाओं की ओर संकेत कर रहे हों, इसे शिक्षा के लिए प्रतिकूल मान रहे हों, इसके बावजूद इसे जोर शोर से लाये जाने की तैयारी हो, तो चिंता और बढ़ जाती है। स्वयं प्रख्यात वैज्ञानिक के। कस्तूरीरंगन, प्रस्तावित नई शिक्षा नीति के चेयरमैन, तथा भारत रत्न, प्रोफेसर सी।एन।आर राव भी इस किस्म के ऑनलाइन शिक्षण का समर्थन नहीं कर रहे हैं। उनका स्पस्ट मानना हैं कि अध्यापक और विद्यार्थियों की शारीरिक उपस्थिति, परस्पर मानसिक जुड़ाव और संवाद सीखने के लिए बेहद महत्वपूर्ण होते है। इसीलिए आमने-सामने के संपर्क, बातचीत, विचारों के आदान-प्रदान के पारंपरिक तरीके बेहतर हैं, उनकी शक्ति चुकी नहीं है। (देखें-राष्ट्रमत, दक्षिण भारत, 9 जून 2020)

आज जब हमारे समय का सबसे प्रचलित मुहावरा -क्या फ़ायदा- हो गया है। हमारा जीवन दर्शन स्वकेन्द्रित लाभ हो गया है और आज की पूंजीवादी संस्कृति में हर चीज -माल- बन गयी है। बाज़ार हमारे समय की नियामक शक्ति बन गया है, जहाँ -ज्ञान- को भी प्रोडक्ट या माल की तरह ही बरता जा रहा है। ऐसे समाज में पूंजीवादी बाज़ार केन्द्रित नीतियों से चकित-विस्मित व भ्रमित होने वालों की कमी नहीं बल्कि उसी में मुक्ति देखने वाले दार्शनिकों, चिंतकों की भी एक बड़ी फौज हमारे समय में है। यह अनायास ही नहीं कि पूंजीवादी संस्कृति -सृजनात्मकता- की दुश्मन और -यथास्थितिवाद- की समर्थक होती है।

उसे मुक्त व सृजनात्मक किस्म के विचारों, व्यवहारों, व्यक्तियों, नीतियों और पद्धतियों से भारी दिक्क़त होती है। सृजनात्मकता पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली स्कूली शिक्षा के डिजिटलीकरण की अतिरिक्त कवायद को भी इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए अन्यथा भारत जैसे देश में जहाँ विद्यार्थियों की भारी संख्या हो, बुनियादी ढांचे की अपर्याप्तता हो, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक विभेदों की अपार बाधाएँ हों, वहां पूरे देश में -एक नीति- और इस किस्म के फैसले का क्या मतलब निकाला जाय, वह भी तब जब इसकी पर्याप्त आलोचना हो रही हो।

(यह लेखक के निजी विचार हैं। लेखक एनसीईआरटी में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं।)

‘बाबा सुजावन’के दर्शन किये बगैर ‘चित्रकूट धाम’का दर्शन अधूरा

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प्रयागराज (एजेंसी): पद्म माधव मंदिर ‘सुजावन देव मंदिर’ के नाम प्रसिद्ध इस स्थल का उल्लेख पुराणों में है। ऐसी मान्यता है कि चित्रकूट धाम का दर्शन तभी फलित होता है,जब बाबा सुजावन का दर्शन किया जाय। प्रत्येक वर्ष श्रावण मास में शिव भक्त जलाभिषेक करने के लिए आते हैं। लेकिन कोरोना काल में भक्तों का आना कम हो गया है।

जनपद मुख्यालय से लगभग 22 किलोमीटर दूर यमुना नदी के किनारे बसे बीकर देवरिया गांव में भीटा पहाड़ी क्षेत्र में अति प्राचीन शिव मंदिर है। प्रकृति में परिवर्तन के साथ ही मंदिर यमुना नदी के बहाव क्षेत्र में आ चुका है। ऐसी मान्यता है कि मर्यादा पुरुषोत्तम राम वनवास जाते समय प्रयाग से चित्रकूट जाने के लिए यमुनापार पार करके यहां प्रथम पैर जल के बाहर रखा और यहीं पर शिव लिंग की स्थापना करके भगवान भोलेनाथ की पूजा अर्चना की। इस दौरान मां सीता ने भोजन भी बनाया था। हालांकि वर्तमान में सीता रसोई जल में समा चुका है।

कुर्म पुराण में मिलता है पद्म माधव का वर्णन

मंदिर के पुजारी ज्ञानेंद्र गोस्वामी ने बताया कि अति प्राचीन शिव मन्दिर का वर्णन कुर्म पुराण में मिलता है। जिसमें पद्म माधव मंदिर का उल्लेख मिलता है। मत्स्य पुराण में भी पद्म माधव का उल्लेख किया गया है। श्रृंगार देवी और गौरईया माता का मंदिर यहां है।

मुगल कालीन आक्रमणकारियों का भी हुआ शिकार

बताते हैं कि अतिप्राचीन शिवलिंग एवं मंदिर को मुगलकाल में इसे नष्ट करने का प्रयास किया गया, लेकिन अबतक अपने अस्तित्व में है। अकबर ने प्रयागराज एवं फतेहपुर सीकरी में बने किले का निर्माण जिस पहाड़ी पर मौजूद था, उसी पत्थरों से निर्मित है। सुजाउद्दीन के हस्तक्षेप की भी कहानी बताई जाती है। उसने भी मंदिर परिसर को पहले नष्ट करने का प्रयास किया, लेकिन मंदिर के समीप रहने वाले बड़े नाग के भय से छोड़ दिया।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के द्वारा धार्मिक स्थलों के विकास अभियान के तहत यहां तक पहुंचने के लिए मार्ग और प्रकाश के विद्युत पोल भी लगाए गए हैं।

नागपंचमी पर वासुकी की पूजा करने पर प्रसन्न होते हैं महादेव

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ज्योतिष : श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है नाग पंचमी का पर्व। इस दिन नागों की पूजा प्रधान रूप से की जाती है। भगवान शिव के गले में जो नाग रहता है उसका नाम वासुकि है। नागपंचमी पर वासुकि नाग, तक्षक नाग और शेषनाग की पूजा का विधान है। इस बार नागपंचमी श्रावण मास की 25 जुलाई शनिवार को मनाई जाएगी। उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र के बाद हस्त नक्षत्र रहेगा। इस दौरान मंगल वश्‍चिक लग्न में होंगे खास संयोग यह है कि इसी दिन कल्कि भगवान की जयंती भी है और इसी दिन विनायक चतुर्थी व्रत का पारण होगा।

नाग पंचमी के देव : नागपंचमी पूजा और व्रत के आठ नाग देव माने गए हैं- अनन्त, वासुकि, पद्म, महापद्म, तक्षक, कुलीर, कर्कट और शंख नामक अष्टनागों की पूजा की जाती है।
नागपंचमी व्रत : नाग पंचमी के व्रत करने के लिए चतुर्थी के दिन एक बार भोजन करें तथा पंचमी के दिन उपवास करके शाम को व्रत खोलें।
नाग पूजा : पूजा करने के लिए नाग चित्र या मिट्टी की सर्प मूर्ति को लकड़ी की चौकी के ऊपर रखकर फिर हल्दी, रोली, चावल और फूल चढ़कर नाग देवता की पूजा की जाती है। उसके बाद कच्चा दूध, घी, चीनी मिलाकर अर्पित किया जाता है। फिर आरती उतारी जाती है। यदि सपेरा आए तो उसके नाग की पूजा करने का भी प्रचलन है फिर सपेरे को दक्षिणा देकर विदा किया जाता है। अंत में नाग पंचमी की कथा सुनी जाती है।

पंचमी तिथि प्रारंभ : 14:33 (24 जुलाई 2020)
नाग पंचमी पूजा मुहूर्त : 05:38:42 से 08:22:11 तक
अवधि : 2 घंटे 43 मिनट
पंचमी तिथि समाप्ति : 12:01 (25 जुलाई 2020)

रोबो-ट्राली से कोरोना मरीजों को भोजन-दवा सर्व करने की तैयारी

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गोरखपुर: कोविड-19 ग्रसित मरीजों तक भोजन-पानी पहुंचाने में अब दिक्कत नहीं होगी। न ही यह जिम्मेदारी निभाने वाला ही संक्रमित मरीज के संपर्क में आएगा, जिससे उसके भी संक्रमित होने का भय हो। वजह, पूर्वोत्तर रेलवे ने रोबो-ट्राली तैयार करना शुरू कर दिया है।

उम्मीद जताई जा रही है कि यह रोबो-ट्राली एक-दो सप्ताह में बनकर तैयार हो जाएगी और इसे अस्पताल को सौंप दिया जाएगा। पूर्वोत्तर रेलवे के मकैनिकल वर्कशॉप में बन रहे रोबो-ट्राली को 23 मीटर की दूरी से ऑपरेट किया जा सकेगा।

यह है विशेषता

यह ट्रॉली चार लेयर की है। सबसे ऊपर खाने की थाली होगी। उसके नीचे पानी, तीसरे लेयर में दवाइयां और अंतिम लेयर में न्यूजपेपर रखा जा सकेगा।

एक-दो सप्ताह में हो जाएगा तैयार

उम्मीद है कि अगले एक-दो सप्ताह में चार ट्रालियों को वर्कशाप द्वारा रेलवे अस्पताल को सौंप सकता है। फिर अस्पताल में सर्विस शुरू हो जाएगी। रोबो-ट्रॉली जरिए मरीजों तक खाना पहुंचाने के मामले में रेलवे हॉस्पिटल पूर्वांचल का पहला अस्पताल होगा।

23 मीटर की दूरी से होगा ऑपरेट, संक्रमण फैलने का भय नहीं

ट्रॉली बनाने में जुटे इंजीनियरों का कहना है कि इसे 23 मीटर की दूरी से ऑपरेट किया जा सकेगा। इससे किसी भी कर्मचारी को किसी भी मरीज से संक्रमण का खतरा नहीं रहेगा। ट्रॉली को वार्ड के आउटर लॉन से ऑपरेट किया जाएगा।

एक वार्ड में लगेगी एक ट्रॉली

रेलवे अस्पताल में कोरोना के चार वार्ड बनाए गए हैं। हर वार्ड में एक ट्रॉली रखी जाएगी। मांग के अनुसार ट्रालियों की संख्या बढ़ाई जा सकती है। इस नए सिस्टम से एक-एक बेड तक रोबो आसानी से पहुंच जाएगा और मरीजों को खाना और दवाएं सर्व कर देगा।

इस सम्बंध में पूर्वोत्तर रेलवे के सीपीआरओ पंकज सिंह का कहना है कि रेलवे वर्कशॉप में रोबा-ट्रॉली बनाई जा रही है। इसके बन जाने से कोविड वार्ड में दवाएं व अन्य जरूरी सामान आसानी से पहुंचाए जा सकेंगे।


सोमनाथ मंदिर में आज से पास प्रणाली शुरू

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वेरावल/अहमदाबाद: श्रावण के पवित्र महीने के दौरान भक्तों की भारी भीड़ सोमनाथ मंदिर में देखी जाती है। ट्रस्ट द्वारा कोरोना में बढ़ती भीड़ को देखते हुए सोमनाथ महादेव मंदिर में आज सुबह 5 बजे से दर्शन के लिए पास की व्यवस्था अनिवार्य कर दी गई है। जिसमें बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए ऑनलाइन बुकिंग अनिवार्य कर दी गई है। दर्शन समय के अनुसार प्रति घंटे केवल 200 पास जारी किए जाएंगे। दिन की तीन आरतियों में से किसी को भी प्रवेश करने की अनुमति नहीं होगी। जबकि वेरावल में रहने वाले लोगों के लिए पथिक आश्रम के पास एक काउंटर स्थापित किया गया है।

सोमनाथ मंदिर में श्रद्धालुओं और पुलिस के बीच झड़प के बाद सिस्टम ने आज से एक पास प्रणाली शुरू कर दी है। वेरावल तहसील के लोगों के लिए पास प्रणाली को अनिवार्य कर दिया गया है। तालुका के बाहर के आगंतुकों को ऑनलाइन पंजीकरण के बाद ही जाने की अनुमति होगी। सोमनाथ मंदिर पहला मंदिर होगा, जो दर्शन के लिए एक पास प्रणाली है। बाहर से सोमनाथ आने वाले भक्तों को ट्रस्ट की वेबसाइट पर पोस्ट किए गए लिंक से अग्रिम में एक समय स्लॉट बुक करना होगा। बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए दर्शन के लिए ऑनलाइन बुकिंग अनिवार्य होगी।

सामाजिक दूरी के साथ दर्शन करना होगा। मास्क पहनने, सामाजिक दूरी बनाए रखने सहित नियमों का पालन किया जाना चाहिए। केवल भक्त जिनके पास पास है, उन्हें मंदिर परिसर में जाने की अनुमति दी जाएगी। सोमनाथ में श्रद्धालुओं और पुलिस के बीच झड़प के बाद जिला प्रशासन, पुलिस विभाग और सोमनाथ ट्रस्ट ने एक समन्वय बैठक की।

नागपंचमी: मध्य रात्रि में खुले नागचंद्रेश्वर मंदिर के पट, विशेष पूजा

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पहली बार श्रद्धालुओं को नहीं मिला मंदिर में प्रवेश, ऑनलाइन कराए जा रहे दर्शन

उज्जैन: उज्जैन में नागपंचमी के अवसर पर विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग भगवान महाकालेश्वर के मंदिर में द्वितीय तल पर स्थित भगवान नागचंद्रेश्वर मंदिर के पट शुक्रवार मध्यरात्रि को खोले गए और महानिर्वाणी अखाड़े के महंत विनीत गिरी महाराज के सान्निध्य में भगवान नागचंद्रेश्वर की पूजा-अर्चना की गई। पहली बार मंदिर में श्रद्धालुओं को प्रवेश नहीं दिया गया है। लोगों को भगवान नागचंद्रेश्वर के अपने घरों में ही ऑनलाइन दर्शन कराये जा रहे हैं।

बता दें कि महाकालेश्वर मंदिर के द्वितीय तल पर श्री नागचन्द्रेश्वर मंदिर के पट साल में एक बार चौबीस घंटे सिर्फ नागपंचमी के दिन ही खुलते हैं। हिंदू धर्म में सदियों से नागों की पूजा करने की परंपरा रही है। हिंदू परंपरा में नागों को भगवान का आभूषण भी माना गया है, लेकिन 300 साल में पहली बार यहां श्रद्धालुओं का प्रवेश प्रतिबंधित किया गया है। कोरोना के चलते श्रद्धालुओं की सुरक्षा, शासकीय अनुदेशों के अनुपालन, भौतिक दूरी बनाये रखने व अन्य एसओपी को दृष्टिगत रखते हुए आम लोगों को अपने घरों से ही विभिन्न प्रसार मध्यमों लोकल केबल, फेसबुक पेज, मंदिर की वेबसाईट, ट्विटर व विभिन्न चैनलों के माध्यम से भगवान नागचन्द्रेश्वर के दर्शन कराए जा रहे हैं।

गौरतलब है कि नागचन्द्रेश्वर मंदिर में 11वीं शताब्दी की एक अद्भुत प्रतिमा स्थापित है, प्रतिमा में फन फैलाए नाग देवता के आसन पर भगवान शिव -पार्वती बैठे हैं। बताया जाता है कि पूरी दुनिया में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जिसमें विष्णु भगवान की जगह भगवान श्री भोलेनाथ सर्प शय्या पर विराजित हैं। साथ में दोनों के वाहन नंदी एवं सिंह भी विराजित हैं। शिवशंभु के गले और भुजाओं में भुजंग लिपटे हुए हैं। कहते हैं कि यह प्रतिमा नेपाल से यहां लाई गई थी। उज्जैन के अलावा दुनिया में कहीं भी ऐसी प्रतिमा नहीं है। नागपंचमी के अवसर पर मंदिर के पट शुक्रवार की रात्रि 12 बजे पट खुले और इसके बाद विशेष पूजा-अर्चना हुई।

नागपंचमी पर्व पर भगवान नागचन्द्रेश्वर की प्रथम पूजा पंचायती महानिर्वाणी अखाडे के महंत विनीत गिरी एवं कलेक्टर व महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति अध्यक्ष आशीष सिंह द्वारा संपन्न कराई और अभिषेख भी किया गया।

ज्योतिर्विद पं. आनंदशंकर व्यास ने बताया कि करीब 300 साल पहले सिंधिया राजवंश ने महाकाल मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था। इसके बाद से ही मंदिर में उत्सव आदि परंपराओं की शुरुआत मानी जाती है। भगवान महाकाल की विभिन्न सवारी और नागपंचमी पर नागचंद्रेश्वर मंदिर में साल में एक बार भक्तों के प्रवेश की परंपरा भी इन्हीं में से एक है, लेकिन इस बार कोरोना के कारण यहां भक्तों को प्रवेश नहीं दिया गया है।

रक्षाबंधन पर 29 साल बाद बना शुभ संयोग

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ज्योतिष : भाई-बहन के प्रेम उत्सव का प्रतीक पर्व रक्षाबंधन का पर्व इस बार तीन अगस्त को कई शुभ संयोग में मनाया जाएगा। इस बार श्रावणी पूर्णिमा के साथ महीने का श्रावण नक्षत्र भी पड़ रहा है, इसलिए पर्व की शुभता और बढ़ जाती है। श्रावणी नक्षत्र का संयोग पूरे दिन रहेगा। इस वर्ष सावन के आखिरी सोमवार यानी 3 अगस्त पर रक्षाबंधन का त्योहार पड़ रहा है।

ज्योतिषाचार्य ने बताया कि भाई-बहन का पवित्र त्योहार रक्षाबंधन इस बार बेहद खास होगा क्योंकि इस साल रक्षाबंधन पर सर्वार्थ सिद्धि और दीर्घायु आयुष्मान का शुभ संयोग बन रहा है। रक्षाबंधन पर ऐसा शुभ संयोग 29 साल बाद आया है। साथ ही इस साल भद्रा और ग्रहण का साया भी रक्षाबंधन पर नहीं पड़ रहा है।

इस साल रक्षाबंधन पर सर्वार्थ सिद्धि और दीर्घायु आयुष्मान योग के साथ ही सूर्य शनि के समसप्तक योग, सोमवती पूर्णिमा, मकर का चंद्रमा श्रवण नक्षत्र, उत्तराषाढ़ा नक्षत्र और प्रीति योग बन रहा है। इसके पहले यह संयोग साल 1991 में बना था। इस संयोग को कृषि क्षेत्र के लिए विशेष फलदायी माना जा रहा है। रक्षाबंधन से पहले 2 अगस्त को रात्रि 8 बजकर 43 मिनट से 3 अगस्त को सुबह 9 बजकर 28 मिनट तक भद्रा रहेगी। इसके साथ ही शाम 7 बजकर 49 मिनट से दीर्घायु कारक आयुष्मान योग भी लग जाएगा।

पौराणिक कथा के अनुसार, शिशुपाल राजा का वध करते समय भगवान श्रीकृष्ण के बाएं हाथ से खून बहने लगा, तो द्रोपदी ने तत्काल अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर उनके हाथ की अंगुली पर बांध दिया। कहा जाता है कि तभी से भगवान कृष्ण द्रोपदी को अपनी बहन मानने लगे और सालों के बाद जब पांडवों ने द्रोपदी को जुए में हरा दिया और भरी सभा में जब दुशासन द्रोपदी का चीरहरण करने लगा तो भगवान कृष्ण ने भाई का फर्ज निभाते हुए उसकी लाज बचाई थी। मान्यता है कि तभी से रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाने लगा, जो आज भी जारी है। श्रावण मास की पूर्णिमा को भाई-बहन के प्यार का त्योहार रक्षाबंधन मनाया जाता है।

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भारत को डिजिटली आत्मनिर्भर बना रहा भारत का ही ऐप ‘डेलीहंट’

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विदेशी ऐप ‘UC न्यूज़’ की जगह ली भारतीय ऐप ‘डेलीहंट’ ने और ‘TIKTOK’ का विकल्प बना ‘जोश’

लखनऊ: (अमरेन्द्र प्रताप सिंह) : डेलीहंट नामक भारत का एक समाचार, मनोरंजन और वीडियो ऐप अब तेजी से लोकप्रिय हो रहा है! इस ऐप के ‘न्यूज़हंट’ पर आप ब्रेकिंग न्यूज़, देश और दुनिया की सुर्खियां, मुख्य समाचार, खेल, व्यापार, बॉलीवुड और राजनीति से जुड़ी बड़ी खबरें, अपने पसंदीदा स्थानीय समाचार पत्र और समय-समय पर अपडेट पर्सनलाइज्ड समाचार आदि पढ़ सकते हैं। इसके अलावा आप अपना दैनिक राशिफल, और ज्योतिष आदि से जुडी जानकारियां भी यहां से पा सकते हैं।

इतना ही नहीं डेलीहंट के ‘जोश’ ऐप पर इंटरनेट की सबसे ट्रेंडिंग वीडियोज़ और मज़ेदार फोटोज़ आदि भी आप देख सकते हैं। इस ऐप ‘जोश’ को डाउनलोड करके आप खुद अपने वीडियो भी अपलोड कर सकते हैं। इस प्रकार डेलीहंट का ‘न्यूज़’ ऐप चायनीज ऐप ‘यूसी न्यूज़’ की कमी को पूरा कर रहा है, इसी तरह इसका ‘जोश’ ऐप चीन के बैन किये जा चुके ऐप ‘टिकटॉक’ का लोकप्रिय भारतीय विकल्प बन चुका है।

दो भारतीयों ने बनाया था यह ऐप, 19 देशों में हो रहा उपयोग

वीरेंद्र गुप्ता, फाउंडर (डेलीहंट)

डेलीहंट ऐप को भारत के उमेश कुलकर्णी और चंद्र शेखर सोहनी ने 2009 में बनाया था, तब इसका नाम ‘न्यूज़हंट’ था। अब इसके मालिक वीरेंद्र गुप्ता हैं। वीरेंद्र गुप्ता ने इसका नाम बदल कर डेलीहंट कर दिया है। इस ऐप का उपयोग आज 19 से अधिक देशों में किया जा रहा है। लगभग 10 करोड़ से ज्यादा यूजर इसका उपयोग कर रहे हैं।

चायनीज ऐप्स का बेहतरीन विकल्प है ‘डेलीहंट’ और ‘जोश’

भारत और चीन के बीच चल रहे भारी तनाव और भारतीय सैनिकों के साथ किये गए चीन की धोखेबाजी के बाद सरकार ने ढेर सारे चायनीज ऐप बैन कर दिए हैं। इसके बाद इन ऐप्स का उपयोग करने वाले यूजर देशभक्ति के भाव से जुड़कर इन ऐप्स को अनइंस्टॉल कर चुके हैं। अब उन्हें एक ऐसे भारतीय ऐप की तलाश है जो चायनीज ऐप का बेहतरीन विकल्प हो, ‘डेलीहंट’ उनकी इस तलाश को पूरी करता है।

तेजी से हो रहा लोकप्रिय, लगातार बढ़ रहे यूजर

इसी वजह से बहुत तेजी के साथ भारतीय इंटरनेट यूजर इस ‘डेलीहंट’ और ‘जोश’ ऐप को इंस्टाल कर रहे हैं। ऐसा लगता है की जल्दी ही टिकटॉक और यूसी न्यूज़ जैसी एप्लीकेशन के ज्यादातर यूजर ‘डेलीहंट’ और ‘जोश’ पर नजर आएंगे। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी और उनके कई मंत्री भी सोशल मीडिया माध्यमों का काफी उपयोग करते हैं, जिस तेज गति से डेलीहंट के भारतीय यूजर बढ़ रहे हैं उम्मीद है की जल्द ही पीएम सहित बड़े राजनेता और सैलिब्रिटी आदि डेलीहंट पर फेसबुक और ट्वीटर की तरह अपने ऑफीसियल हैण्डल से डेलीहंट पर नजर आयेंगे।

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थोड़ा डिजिटल हो जाएं!

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प्रो. संजय द्विवेदी

स्तम्भ: कोरोना काल ने सही मायने में भारत को डिजीटल इंडिया बना दिया है। पढ़ाई-लिखाई के क्षेत्र में इसका व्यापक असर हुआ है। प्राइमरी से लेकर उच्चशिक्षा संस्थानों ने आनलाईन कक्षाओं का सहारा लेकर नए प्रतिमान रचे हैं। आने वाले समय में यह चलन कितना प्रभावी होगा यह तो नहीं कहा जा सकता, किंतु संकट काल में संवाद, शिक्षा और सहकार्य के तमाम अवसर इस माध्यम से प्रकट हुए हैं।

यह कहा जा रहा कि आनलाइन कक्षाएं वास्तविक कक्षाओं का विकल्प नहीं हो सकतीं क्योंकि एक शिक्षक की उपस्थिति में कुछ सीखना और उसकी वर्चुअल उपस्थिति में कुछ सीखना दोनों दो अलग-अलग परिस्थितियां हैं। संभव है कि हमारा अभ्यास वास्तविक कक्षाओं का है और हमारा मन और दिमाग इसे स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है कि आनलाइन कक्षाएं भी सफल हो सकती हैं। दिमाग की कंडीशनिंग( अनुकूलन) कुछ ऐसी हुई है कि हम वर्चुअल कक्षाओं को वह महत्ता देने के लिए तैयार नहीं है जो वास्तविक कक्षाओं के देते हैं। फिर भी यह मानना होगा कि आभासी दुनिया आज तमाम क्षेत्रों में वास्तविक दुनिया को मात दे रही है।

हमारे निजी जीवन में हम जिस तरह डिजीटल हुए हैं, क्या वह पहले संभव दिखता था। हमारी बैंकिग, हमारे बाजार, हमारा खानपान, तमाम तरह के बिल भरने की प्रक्रिया, टिकिटिंग और ट्रैवलिंग के इंतजाम क्या कभी आनलाइन थे। पर समय ने सब संभव किया है। आज एटीएम जरूरत है तथा आनलाइन टिकट वास्तविकता। हमारी तमाम जरूरतें आज आनलाईन ही चल रही हैं। ऐसे में यह कहना बहुत गैरजरुरी नहीं है कि आनलाइन माध्यम ने संभावनाओं के नए द्वार खोल दिए हैं। आनलाइन शिक्षा के माध्यम को इस कोरोना संकट ने मजबूत कर दिया है।

आनलाइन कक्षाओं ने संसाधनों का एक नया आकाश रच दिया है। जो व्यक्ति आपकी किसी क्लास, किसी आयोजन, कार्यशाला के लिए दो घंटे का समय लेकर नहीं आ सकता,यात्रा में लगने वाला वक्त नहीं दे सकता। वही व्यक्ति हमें आसानी से उपलब्ध हो जाता है। क्योंकि उसे पता है कि उसे अपने घर या आफिस से ही यह संवाद करना है और इसके लिए उसे कुछ अतिरिक्त करने की जरुरत नहीं है। यह अपने आप में बहुत गजब समय है। जब मानव संसाधन के स्मार्ट इस्तेमाल के तरीके हमें मिले हैं। आप दिल्ली, चेन्नई या भोपाल में होते हुए भी विदेश के किसी देश में बैठे व्यक्ति को अपनी आनलाईन कक्षा में उपलब्ध करा सकते हैं।

इससे शिक्षण में विविधता और नए अनुभवों का सामंजस्य भी संभव हुआ है। इस शिक्षा का ना तो भूगोल है, न ही समय सीमा। इन लाकडाउन के दिनों में अनेक मित्रों ने कई विषयों में आनलाइन कोर्स कर अपने को ज्ञानसमृद्ध किया है। भोपाल का एक विश्वविद्यालय सूदूर अरुणाचल विश्वविद्यालय के विद्वान मित्रों के साथ एक साझा संगोष्ठी आनलाइन आयोजित कर लेता है। यह किसी विदेशी विश्वविद्यालय के साथ भी संभव है। यात्राओं में होने वाले खर्च, आयोजनों में होने वाले खर्च, खानपान के खर्च जोड़ें तो ऐसी संगोष्ठियां कितनी महंगी हैं। बावजूद इसके किसी व्यक्ति को साक्षात सुनना और देखना। साक्षात संवाद करना और वर्चुअल माध्यम से उपस्थित होना। इसमें अंतर है। यह रहेगा भी।

बावजूद इसके जैसे-जैसे हम इस माध्यम के साथ हम सहज होते जाएंगें,यह माध्यम भी वही सुख देगा जो किसी की भौतिक उपस्थिति देती है। भावनात्मक स्तर पर इसकी तुलना सिनेमा से की जा सकती है। यह सिनेमा सा सुख है। अच्छा सिनेमा हमें भावनात्मक स्तर पर जोड़ लेता है। इसी तरह अच्छा संवाद भी हमें जोड़ता है भले ही वह वर्चुअल क्यों न हो। जबकि बोरिंग संवाद भले ही हमारे सामने हो रहे हों, हम हाल की पहली पंक्ति में बैठकर भी सोने लगते हैं या बोरियत का अनुभव करने लगते हैं।

शिक्षा का असल काम है विषय में रूचि पैदा करना। अच्छा शिक्षक वही है जो आपमें जानने की भूख जगा दे। इसलिए प्रेरित करने का काम ही हमारी कक्षाएं करती हैं। पुरानी पीढ़ी शायद इतनी जल्दी यह स्वीकार न करे, किंतु नई पीढ़ी तो वर्चुअल माध्यमों के साथ ही ज्यादा सहज है। हमें दुकान में जाकर सैकड़ों चीजें में से कुछ चीजें देखकर,छूकर, मोलभाव करके खरीदने की आदत है। नई पीढ़ी आनलाइन शापिंग में सहज है। ऐसे अनेक उदाहरण हैं जिनमें नई पीढ़ी की चपलता, सहजता देखते ही बनती है।

शायद हम जैसे शिक्षकों को इस माध्यम के साथ वह सहजता न महसूस हो रही हो, संभव है कि आपकी वर्चुअल कक्षा में उपस्थित छात्र या छात्रा उसके साथ ज्यादा सहज हों। हमारा मन यह स्वीकारने को तैयार नहीं है कि कोई स्क्रीन हमारी भौतिक उपस्थिति से ज्यादा ताकतवर हो सकती है। किंतु आवश्यक्ता और मजबूरियां हमें नए विकल्पों पर विचार के लिए बाध्य करती हैं। आज आनलाइन शिक्षा एक वास्तविकता है, जिसे हम माने या न मानें स्वीकारना पड़ेगा। कोरोना के संकट ने हमारी पूरी शिक्षा व्यवस्था के सामने कई सवाल खड़े किए हैं। जिसमें क्लासरूम टीचिंग की प्रासंगिकता, उसकी रोचकता और जरुरत बनाए रखना एक बड़ी चुनौती है।

ज्ञान को रोचक अंदाज में प्रस्तुत करने और सहज संवाद की चुनौती भी सामने है। आज का विद्यार्थी नए वर्चुअल माध्यमों के साथ सहज है, उसने डिजीटल को स्वीकार कर लिया है। इसलिए डिजीटल माध्यमों के साथ सहज संबंध बनाना शिक्षकों की भी जिम्मेदारी है। कक्षा के अलावा असाईनमेंट, नोट्स और अन्य शैक्षिक गतिविधियों के लिए हम पहले से ही डिजीटल थे। अब कक्षाओं का डिजीटल होना भी एक सच्चाई है। संवाद, वार्तालाप, कार्यशालाओं, संगोष्ठियों को डिजीटल माध्यमों पर करना संभव हुआ है।

इसे ज्यादा सरोकारी, ज्यादा प्रभावशाली बनाने की विधियां निरंतर खोजी जा रही हैं। इस दिशा में सफलता भी मिल रही है। गूगल मीट, जूम, जियो मीट, स्काइप जैसे मंच आज की डिजीटल बैठकों के सभागार हैं। जहां निरंतर सभाएं हो रही हैं, विमर्श निरंतर है और संवाद 24X7 है। कहते हैं डिजीटल मीडिया का सूरज कभी नहीं डूबता।

वह सदैव है, सक्रिय है और चैतन्य भी। माध्यम की यही शक्ति इसे खास बनाती है। यह बताती है कि प्रकृति सदैव परिर्वतनशील है और कुछ भी स्थायी नहीं है। मनुष्य ने अपनी चेतना का विस्तार करते हुए नित नई चीजें विकसित की हैं। जिससे उसे सुख मिले, निरंतर संवाद और जीवन में सहजता आए। डिजीटल मीडिया भी मनुष्य की इसी चेतना का विस्तार है। इसके आगे भी वह नए-नए रुप लेकर आता रहेगा। नया और नया और नया। न्यू मीडिया के आगे भी कोई और नया मीडिया है। उस सबसे नए की प्रतीक्षा में आइए थोड़ा डिजीटल हो जाएं।

(लेखक भारतीय जनसंचार संस्थान (आईआईएमसी), दिल्ली के महानिदेशक हैं।)

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