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Channel: Lifestyle News –जीवनशैली – Dastak Times | National Hindi Magazine
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बाके बिहारी के भक्तों को अभी और करना होगा इंतजार

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फाइल फोटो

31 जुलाई तक नहीं खुलेंगे मंदिरों के पट

लखनऊ/मथुरा, 30 जून, दस्तक (ब्यूरो): गृहमंत्रालय से अनलॉक 2 की नई गाइडलाइन जारी होने के बाद यूपी में अपने प्रभु के दर्शनों की आस लगाए बैठे भक्तों को कुछ और इंतजार करना होगा। मंदिर प्रबंधकों ने 31 जुलाई तक मंदिरों के पट बंद रखने का फैसला लिया है। मंगलवार को देर शाम बांके बिहारी मंदिर प्रबंधक मुनीष कुमार शर्मा की ओर पत्र भी जारी कर दिया गया है। मंदिर के कर्ताधर्ताओं का कहना है कि गुरु पूर्णिमा पर आने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ को बिना जिला प्रशासन के सहयोग के नियंत्रित कर पाना संभव नहीं होगा। साथ ही सोशल डिस्टेंसिंग का अनुपालन भी सुनिश्चित नहीं हो सकेगा। ऐसे में जिला प्रशासन के सहयोग के बिना मंदिरों को आम भक्तों के लिए खोला जाना संभव नहीं है।

31 जुलाई तक बंद रहेंगे सप्तदेवालय, होंगे ऑनलाइन दर्शन

फाइल फोटो

वहीं प्राचीन सप्तदेवालयों में से 6 देवालयों ने कोरोना महामारी के चलते मंदिरों के पट 31 जुलाई तक आम दर्शनार्थियों के लिए बंद रखने का निर्णय लिया है। ऑनलाइन बैठक में ठा. राधादामोदर मंदिर, राधामदनमोहन मंदिर, राधागोविंददेव मंदिर, राधागोपीनाथ मंदिर, राधाश्यामसुंदर मंदिर एवं राधागोकुलानंद मंदिर के आचार्य, महंत एवं सेवायत गोस्वामियों ने एक मत से निर्णय लिया कि देश में निरंतर तेजी से बढ़ रहे कोरोना के मामलों को देखते हुए देशहित एवं जनहित में मंदिरों के पट आम दर्शनार्थियों के लिए 31 जुलाई तक बंद रखे जाएं। बताया कि इस दौरान मंदिर में सेवा, पूजा, आरती, भोगराग सेवा सेवायत गोस्वामियों द्वारा विधिवत एवं परंपरागत रूप से निरंतर जारी रहेगी। ठाकुरजी के श्रीविग्रह के दैनिक दर्शन, आरती दर्शन आदि ऑनलाइन मंदिर की वेबसाइट, फेसबुक, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम और यूट्यूब आदि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भक्त कर सकेंगे।


आज से गहन निद्रा में सो जाएंगे विष्णु, अब 25 नवम्बर को देवउठनी एकादशी पर योग निद्रा से जागेंगे

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ज्योतिष : आज यानि एक जुलाई आषाढ़ महीने के शुक्लपक्ष की एकादशी है। इसे देवशयनी एकादशी पर्व कहा जाता है। इस दिन से भगवान विष्णु चार महीने तक योग निद्रा में रहते हैं। इस एकादशी पर भगवान विष्णु की विशेष पूजा के बाद शयन करवाने की परंपरा है। इस एकादशी पर श्रद्धा अनुसार व्रत और उपवास रखा जाता है। भगवान विष्णु का अभिषेक किया जाता है और दान दिया जाता है। इसके बाद कार्तिक महीने के शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि यानी 25 नवंबर को विशेष पूजा पाठ के साथ भगवान को जगाया जाएगा। इस दिन को देव प्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है।

भगवान विष्णु के जागने के बाद इस दिन से मांगलिक कामों की शुरुआत हो जाएगी। वामन पुराण के अनुसार, भगवान विष्णु ने वामन अवतार में राजा बलि से तीन पग भूमि दान में मांगी थी। भगवान ने पहले पग में पूरी पृथ्वी, आकाश और सभी दिशाओं को ढक लिया। अगले पग में स्वर्ग लोक ले लिया। तीसरा पग बलि ने अपने आप को समर्पित करते हुए सिर पर रखने को कहा। इस तरह दान से प्रसन्न होकर भगवान ने बलि को पाताल लोक का राजा बना दिया और वर मांगने को कहा।

बलि ने वर मांगते हुए कहा कि भगवान आप मेरे महल में निवास करें। तब भगवान ने बलि की भक्ति देखते हुए चार महीने तक उसके महल में रहने का वरदान दिया। धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान विष्णु देवशयनी एकादशी से देवप्रबोधिनी एकादशी तक पाताल में बलि के महल में निवास करते हैं। पूजा के स्थान पर भगवान विष्णु की सोने, चांदी, तांबे या पीतल की मूर्ति स्थापित करें। फिर भगवान की पूजा करें। भगवान विष्णु को पीला कपड़ा चढ़ाएं। व्रत की कथा सुनें उसके बाद आरती करें।

6 जुलाई से सावन माह शुरू होगा, इस महीने गुरु पूर्णिमा, तीन एकादशियां रहेंगी

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ज्योतिष : हिन्दी पंचांग के अनुसार जुलाई माह में कई बड़े पर्व आ रहे हैं। जुलाई में सावन माह रहेगा, नाग पंचमी मनाई जाएगी और तीन एकादशियां रहेंगी। जानिए जुलाई 2020 की खास तिथियां और उन तिथियों पर कौन-कौन से शुभ काम कर सकते हैं। 1 जुलाई को देवशयनी एकादशी है। इस दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा करें और उपवास करें। 5 जुलाई को गुरु पूर्णिमा है। इस पूर्णिमा पर अपने गुरु का आशीर्वाद लेने, नदी में स्नान करने का और अपने इष्टदेव के दर्शन करने का विशेष महत्व है।

6 जुलाई से भगवान शिव का प्रिय माह सावन शुरू हो रहा है। ये माह 3 अगस्त तक रहेगा। सावन में शिवजी के लिए व्रत और पूजा करें। 8 जुलाई को गणेश चतुर्थी व्रत रहेगा। इस तिथि पर भगवान गणेशजी के लिए व्रत करने की परंपरा है।

16 जुलाई को कामिका एकादशी का व्रत रखा जाएगा। इस दिन भगवान विष्णु और उनके अवतारों का पूजन करें। 20 जुलाई को सावन माह की अमावस्या है। इसे हरियाली अमावस्या कहते हैं। इस बार सोमवती अमावस्या रहेगी। इस दिन पितरों के लिए तर्पण और श्राद्ध करें।

23 जुलाई को हरियाली तीज रहेगी। इस दिन देवी पार्वती के लिए व्रत करने और पूजा करने का विधान है। 24 जुलाई को विनायकी चतुर्थी है। भगवान गणेश को दूर्वा चढ़ाएं और लड्डू का भोग लगाकर पूजा करें। 25 जुलाई को नाग पंचमी है। इस दिन नागदेव का पूजन करें, लेकिन ध्यान रखें सांप को दूध पिलाने से बचें। 30 जुलाई को पुत्रदा एकादशी का व्रत है।

3 जुलाई 2020 का राशिफल: जाने कैसे रहेगा आपका आज का दिन

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मेष राशि

आपके मन की शुद्धता ही आपकी पहचान है, आपके अंदर अन्य व्यक्तियों की बुरी आदतों को समाप्त कराने का अद्भुत गुण है। अपनी कमियों को एक-एक करके दूर करें।अंतरिक्ष में ग्रहों की स्थिति जल के द्वारा संक्रमण करा सकती है। जिन लोगों ने आप से उधार ले रखा है, उनको भी रिमाइंडर दें।
वृष राशि

आज ऑफिस में सहयोगी प्रतिद्वंदी की तरह व्यवहार करेंगे, लेकिन आपको अपने काम पर ही ध्यान देना है। ऑफिस से अनावश्यक अवकाश लेने से बचना चाहिए। धैर्य के साथ समय व्यतीत करिये। श्रीगणपति जी आपको लाभ देंगे।आज ससुराल पक्ष से कुछ विवाद हो सकता है।
मिथुन राशि

आज ऑफिस हो या घर सभी जगह उत्सााहित रहना होगा। मजाक में भी किसी का उपहास न करें। व्यक्ति आपकी बात का बुरा मान सकता है। पार्टी को धूमधाम से इंज्वाय करें।  आज संतान की पढ़ाई को लेकर चिंता रहेगी।

कर्क राशि

व्यापारियों को ग्राहक की संतुष्टि और उसकी प्रसन्नता को सर्वोपरि रखना होगा। पोषक तत्वों की कमी न होने दें।  डॉक्टर की सलाह का पालन अवश्य करें। माता के स्वास्थ्य और उनके खान-पान पर भी विशेष ध्यान रखें।
सिंह राशि

ऑफिस में आपके काम को लेकर आपके उच्चाधिकारी संतुष्ट होंगे और भविष्य में पदोन्नति के रास्ते भी  खुलेंगे। बड़ों की बातों पर तीखी प्रतिक्रिया देना ठीक नहीं है। शिष्टाचार बनाए रखें। पिता या पिता तुल्य का सम्मान करें और उनका आशीर्वाद लें।हनुमान जी महाराज की उपासना करें। मानसिक शांति बनाए रखें।

कन्या राशि

प्रतियोगिता की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों को पुस्तकें, समाचार पत्रों को नियमित पढ़ने से सामान्य ज्ञान बढ़ेगा। करियर को लेकर कठोर तप करने का समय चल रहा है।  कुछ समय निकालकर वृक्षारोपण, भूखों को भोजन कराने जैसे सामाजिक कार्य कर सकते हैं। शुगर हाई है, तो मीठा खाने से परहेज करना होगा।

तुला राशि

आज कोई भी काम आपको कल के लिए नहीं छोड़ना है। पेंडिंग काम न छोड़ें अन्यथा काम का बोझ बढ़ सकता है। स्वास्थ्य पर भी ध्यान रखें। महिलाओं अग्नि से संबंधित सतर्कता बरतनी चाहिए। खासतौर से खाना बनाते समय कॉटन के कपड़े ही पहनें।

वृश्चिक राशि

प्रसार और प्रचार से जुड़े हुए लोगों के लिए आज का दिन शुभ है। पत्रकारिता एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े हुए लोगों के आज अच्छी खबर हाथ लग सकती है।अनावश्यक रूप से तनाव नहीं लेना चाहिए। गाय को गुड़ अवश्य खिलाएं। बच्चों को चोट लगने की आशंका है।

धनु राशि

चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े हुए लोगों को अपने भीतर सेवा भाव में तनिक भी कमी नहीं आने देना चाहिए। अत्यधिक प्रोफेशनल से अपयश मिलने की आशंका आज आपको पारिवारिक सदस्यों द्वारा पूर्ण सहयोग मिलेगा। विद्यार्थियों को पढ़ाई में ध्यान देना चाहिए।

मकर राशि

ऑफिस में कोई भी जिम्मेदारी लेने से पहले ठीक से सोच लीजिए कि यह कार्य समय पर हम कर पाएंगे कि नहीं। आज का दिन जिम्मेदारी लेने के लिए ठीक नहीं है।ऋण लेने के बचें। पार्टनर या मित्र किसी पर भी अनावश्यक  शंका न करें।

कुंभ राशि

ईर्ष्यालु लोग आपकी कमियों को उच्चाधिकारियों तक पहुंचाने का कार्य कर सकते हैं।अपना काम सजग होकर करना होगा।  आज के दिन क्रिएटिव काम करें। गरीब बच्चे को दान दें।

मीन राशि

घर हो या ऑफिस महत्वपूर्ण बैठक में भाग लेते समय आपको मुखर होकर अपनी बातें कहनी होंगी। टीम की समस्या आपकी समस्या होनी चाहिए। टीम के साथ सराहनीय कार्य करने की प्रबल संभावनाएं हैं। पुराने उधार को कम करें।

चंद्रग्रहण और गुरु पूर्णिमा एक साथ, अद्भुत संयोग

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ज्योतिष : 5 जुलाई को चंद्र ग्रहण और गुरु पूर्णिमा एक साथ पड़ रहा है। इस चंद्रग्रहण में सूतक काल मान्य नहीं होगा यानि किसी भी प्रकार के शुभ कार्य वर्जित नहीं होंगे। पूजा पाठ और भोजन से जुड़े कार्य किया जा सकेंगे। लेकिन फिर भी संयम बरतने और नियमों का पालन करना जरूरी है। वैसे चंद्र ग्रहण लगने से 9 घंटे पहले ही सूतक काल शुरू हो जाता है। सूतक काल लगने के बाद से कुछ भी खाना नहीं चाहिए।

गुरु पूर्णिमा 5 जुलाई रविवार के दिन पड़ रहा है। गुरु पूर्णिमा आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसी दिन तमाम ग्रंथों की रचना करने वाले महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था। तभी से उनके सम्मान में आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। गुरु पूर्णिमा के मौके पर चंद्र ग्रहण भी लग रहा है। सनातन परंपरा में गुरु को ईश्वर से भी ऊंचा स्थान दिया गया है। क्योंकि गुरु ही होता है जो आपको गोविंद से साक्षात्कार करवाता है।

गर्भवती महिलाओं को ग्रहण के दौरान सात्विक भोजन लेने की सलाह दी जाती है। वहीं, पानी में 8-10 तुलसी के पत्ते डालकर, उबाल कर पीना चाहिए। भारत में इस ग्रहण को नहीं देखा जा सकेगा। यह ग्रहण यूरोप, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में दिखाई देगा। इस ग्रहण का कुल समय तकरीबन पौने तीन घंटे कहा जा रहा है।

5 जुलाई को चंद्र ग्रहण का समय
उपच्छाया से पहला स्पर्श : सुबह 8:38 बजे
परमग्रास चंद्र ग्रहण : सुबह 9:59 बजे
उपच्छाया से अन्तिम स्पर्श : सुबह 11:21 बजे
ग्रहण अवधि : 2 घंटे 43 मिनट 24 सेकंड

जनवरी 2020 में पहला चन्द्र ग्रहण लगा था। इस वर्ष कुल 6 ग्रहण लगने वाले हैं। लेकिन शास्त्रों के अनुसार एक वर्ष में 3 या तीन से अधिक ग्रहण का लग्न किसी भी तरह से ठीक नहीं होता है।

मानव जीवन को काफी विचलित कर सकते हैं इतने ग्रहण। इस ग्रहणकाल में 6-6 ग्रहों (बुद्ध, गुरु, शुक्र, शनि और राहु-केतु) के वक्री होने से तूफान, भूकंप और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाएं, गृह युद्ध, अग्नि की घटनाओं, अनहोनी की संभावना बढ़ जाती है। इस पृथ्वी के अति महत्वपूर्ण व्यक्तियों पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

कैसे करें मॉ लक्ष्मी को प्रसन्न कि आये आपके घर सुख समृद्धि

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मां लक्ष्मी की कृपा से जीवन में सुख, शांति, समृद्धि, धन और ऐश्वर्य प्राप्त होता है। लेकिन जब तक मां लक्ष्मी की कृपा न हो, इन सभी सुखों एवं शुभता की प्राप्ति संभव नहीं है। इसलिए अगर आप भी चाहते हैं कि आपके जीवन में समृद्धि और मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहे, तो जानिए ये 9 उपाय –

  • शुक्रवार के दिन सुबह उठते ही मां लक्ष्मी को नमन कर, स्नान कर स्वच्छ सफेद या गुलाबी वस्त्र धारण करें। इसके बाद श्रीयंत्र व मां लक्ष्मी के चित्र के सामने खड़े होकर श्री सूक्त का पाठ करें। अगर संभव हो तो कमल का पुष्प मां लक्ष्मी को अर्पित करें।
  • जब भी घर से किसी भी खास काम से निकलें, तो निकलने से पहले थोड़ा मीठा दही खाकर निकलें।
  • अगर आपके काम में अवरोध आ रहा है, तो शुक्रवार के दिन काली चींटियों को चीनी डालें।
  • शुक्रवार के दिन मां लक्ष्मी के मंदिर जाकर शंख, कौड़ी, कमल, मखाना, बताशा अर्पित करें। ये सब महालक्ष्मी मां को बहुत प्रिय हैं।
  • अगर पति-पत्नी में तनाव रहता है तो शुक्रवार के दिन अपने शयनकक्ष में प्रेमी पक्षी जोड़े की तस्वीर लगाएं।

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  • घर में स्थायी सुख-समृद्धि हेतु पीपल के वृक्ष की छाया में खड़े रहकर लोहे के बर्तन में जल, चीनी, घी तथा दूध मिलाकर पीपल के वृक्ष की जड़ में डालने से घर में लंबे समय तक सुख-समृद्धि रहती है और लक्ष्मी का वास होता है।
  • घर में बार-बार धनहानि हो रही हो तो घर के मुख्य द्वार पर गुलाल छिड़ककर गुलाल पर शुद्ध घी का दोमुखी दीपक जलाना चाहिए। दीपक जलाते समय मन ही मन यह कामना करनी चाहिए कि भविष्य में घर में धनहानि का सामना न करना पड़ें। जब दीपक शांत हो जाए तो उसे बहते हुए पानी में बहा देना चाहिए।
  • संपत्ति और संतान की प्राप्ति चाहते हैं, तो गजलक्ष्मी मां की उपासना करें। इससे संतान की प्राप्ति भी होगी और संपत्ति में भी बढ़ोतरी होती है।
  • घर में या बाहर कहीं भी अन्न का अपमान न करें और न ही होने दें। जो लोग भी क्रोध में आकर खाने से सजी थाली फेंकते हैं उनके घर कभी धन, वैभव और सुख नहीं रहता।

जानें गुरु पूर्णिमा का क्या है महत्व

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गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वर,
गुरु साक्षात् परमं ब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नम:

अर्थात- गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है और गुरु ही भगवान शंकर है। गुरु ही साक्षात परब्रह्म है। ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करता हूं।

गुरु के प्रति नतमस्तक होकर कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन है गुरुपूर्णिमा। गुरु के लिए पूर्णिमा से बढ़कर और कोई तिथि नहीं हो सकती। जो स्वयं में पूर्ण है, वही तो पूर्णत्व की प्राप्ति दूसरों को करा सकता है। पूर्णिमा के चंद्रमा की भांति जिसके जीवन में केवल प्रकाश है, वही तो अपने शिष्यों के अंत:करण में ज्ञान रूपी चंद्र की किरणें बिखेर सकता है। इस दिन हमें अपने गुरुजनों के चरणों में अपनी समस्त श्रद्धा अर्पित कर अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करनी चाहिए। गुरु कृपा असंभव को संभव बनाती है। गुरु कृपा शिष्य के हृदय में अगाध ज्ञान का संचार करती है।

गुरु की महिमा

गुरु को गोविंद से भी ऊंचा कहा गया है। शास्त्रों में गु का अर्थ बताया गया है- अंधकार या मूल अज्ञान और रु का का अर्थ किया गया है- उसका निरोधक। गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है कि वह अज्ञान तिमिर का ज्ञानांजन-शलाका से निवारण कर देता है। अर्थात् अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को ‘गुरु’ कहा जाता है। गुरु तथा देवता में समानता के लिए एक श्लोक में कहा गया है कि जैसी भक्ति की आवश्यकता देवता के लिए है वैसी ही गुरु के लिए भी। सद्गुरु की कृपा से ईश्वर का साक्षात्कार भी संभव है।

गुरु की कृपा के अभाव में कुछ भी संभव नहीं है। ‘व्यास’ का शाब्दिक संपादक, वेदों का व्यास यानी विभाजन भी संपादन की श्रेणी में आता है। कथावाचक शब्द भी व्यास का पर्याय है। कथावाचन भी देश-काल-परिस्थिति के अनुरूप पौराणिक कथाओं का विश्लेषण भी संपादन है। भगवान वेदव्यास ने वेदों का संकलन किया, 18 पुराणों और उपपुराणों की रचना की। ऋषियों के बिखरे अनुभवों को समाजभोग्य बना कर व्यवस्थित किया। पंचम वेद ‘महाभारत’ की रचना इसी पूर्णिमा के दिन पूर्ण की और विश्व के सुप्रसिद्ध आर्ष ग्रंथ ब्रह्मसूत्र का लेखन इसी दिन आरंभ किया। तब देवताओं ने वेदव्यासजी का पूजन किया। तभी से व्यास पूर्णिमा मनायी जा रही है।

‘‘तमसो मा ज्योतिगर्मय’’ अंधकार की बजाय प्रकाश की ओर ले जाना ही गुरुत्व है। आगम-निगम-पुराण का निरंतर संपादन ही व्यास रूपी सद्गुरु शिष्य को परमपिता परमात्मा से साक्षात्कार का माध्यम है। जिससे मिलती है सारूप्य मुक्ति।

तभी कहा गया- ‘‘सा विद्या या विमुक्तये।’’ आज विश्वस्तर पर जितनी भी समस्याएं दिखाई दे रही हैं, उनका मूल कारण है गुरु-शिष्य परंपरा का टूटना। श्रद्धावाल्लभते ज्ञानम्। आज गुरु-शिष्य में भक्ति का अभाव गुरु का धर्म ‘‘शिष्य को लूटना, येन केन प्रकारेण धनार्जन है’’ क्योंकि धर्मभीरुता का लाभ उठाते हुए धनतृष्णा कालनेमि गुरुओं को गुरुता से पतित करता है। यही कारण है कि विद्या का लक्ष्य ‘मोक्ष’ न होकर धनार्जन है। ऐसे में श्रद्धा का अभाव स्वाभाविक है। अन्ततः अनाचार, अत्याचार, व्यभिचार, भ्रष्टाचारादि कदाचार बढ़ा। व्यासत्व यानी गुरुत्व अर्थात् संपादकत्व का उत्थान परमावश्यक है।

गुरु पूर्णिमा: आज के दिन गोवर्धन पर्वत की लाखों श्रद्धालु करते है परिक्रमा

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गुरु पूर्णिमा / व्यास पूर्णिमा / मुड़िया पूनों आषाढ़ मास की पूर्णिमा को कहा जाता है। इस दिन गोवर्धन पर्वत की लाखों श्रद्धालु परिक्रमा देते हैं। बंगाली साधु सिर मुंडाकर परिक्रमा करते हैं, क्योंकि आज के दिन सनातन गोस्वामी का तिरोभाव हुआ था। ब्रज में इसे ‘मुड़िया पूनों’ कहा जाता है। आज का दिन गुरु–पूजा का दिन होता है।

इस दिन गुरु की पूजा की जाती है। पूरे भारत में यह पर्व बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। वैसे तो ‘व्यास’ नाम के कई विद्वान् हुए हैं, परंतु व्यास ऋषि जो चारों वेदों के प्रथम व्याख्याता थे, आज के दिन उनकी पूजा की जाती है। हमें वेदों का ज्ञान देने वाले व्यास जी ही थे। अत: वे हमारे ‘आदिगुरु’ हुए। उनकी स्मृति को बनाए रखने के लिए हमें अपने-अपने गुरुओं को व्यास जी का अंश मानकर उनकी पूजा करनी चाहिए।

प्राचीन काल में जब विद्यार्थी गुरु के आश्रम में नि:शुल्क शिक्षा ग्रहण करते थे तो इसी दिन श्रद्धा भाव से प्रेरित होकर अपने गुरु की पूजा किया करते थे और उन्हें यथाशक्ति दक्षिणा अर्पण किया करते थे। इस दिन केवल गुरु की ही नहीं अपितु कुटुम्ब में अपने से जो बड़ा है अर्थात् माता-पिता, भाई-बहन आदि को भी गुरुतुल्य समझना चाहिए।

गुरु पूर्णिमा जगत् गुरु माने जाने वाले वेद व्यास को समर्पित है। माना जाता है कि वेदव्यास का जन्म आषाढ़ मास की पूर्णिमा को हुआ था। वेदों के सार ब्रह्मसूत्र की रचना भी वेदव्यास ने आज ही के दिन की थी। वेद व्यास ने ही वेद ऋचाओं का संकलन कर वेदों को चार भागों में बांटा था। उन्होंने ही महाभारत, 18 पुराणों व 18 उप पुराणों की रचना की थी जिनमें भागवत पुराण जैसा अतुलनीय ग्रंथ भी शामिल है। ऐसे जगत् गुरु के जन्म दिवस पर गुरु पूर्णिमा मनाने की परंपरा है।


गुरु पूर्णिमा में कैसे करें व्रत और विधान

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इस दिन (गुरु पूजा के दिन) प्रात:काल स्नान पूजा आदि नित्य कर्मों से निवृत्त होकर उत्तम और शुद्ध वस्त्र धारण कर गुरु के पास जाना चाहिए। गुरु को ऊंचे सुसज्जित आसन पर बैठाकर पुष्पमाला पहनानी चाहिए। इसके बाद वस्त्र, फल, फूल व माला अर्पण कर तथा धन भेंट करना चाहिए। इस प्रकार श्रद्धापूर्वक पूजन करने से गुरु का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

गुरु के आशीर्वाद से ही विद्यार्थी को विद्या आती है। उसके हृदय का अज्ञानता का अन्धकार दूर होता है। गुरु का आशीर्वाद ही प्राणी मात्र के लिए कल्याणकारी, ज्ञानवर्धक और मंगल करने वाला होता है। संसार की संपूर्ण विद्याएं गुरु की कृपा से ही प्राप्त होती हैं और गुरु के आशीर्वाद से ही दी हुई विद्या सिद्ध और सफल होती है।

गुरु पूर्णिमा पर व्यासजी द्वारा रचे हुए ग्रंथों का अध्ययन-मनन करके उनके उपदेशों पर आचरण करना चाहिए। इस दिन केवल गुरु (शिक्षक) ही नहीं, अपितु माता-पिता, बड़े भाई-बहन आदि की भी पूजा का विधान है।

इस पर्व को श्रद्धापूर्वक मनाना चाहिए, अंधविश्वासों के आधार पर नहीं। गुरु पूजन का मन्त्र है-

‘गुरु ब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुदेव महेश्वर:।’
गुरु साक्षात्परब्रह्म तस्मैश्री गुरुवे नम:।।


क्या करें गुरु पूर्णिमा के दिन

  1. प्रातः घर की सफाई, स्नानादि नित्य कर्म से निवृत्त होकर साफ-सुथरे वस्त्र धारण करके तैयार हो जाएं।
  2. घर के किसी पवित्र स्थान पर पटिए पर सफेद वस्त्र बिछाकर उस पर 12-12 रेखाएं बनाकर व्यास-पीठ बनाना चाहिए।
  3. फिर हमें ‘गुरुपरंपरासिद्धयर्थं व्यासपूजां करिष्ये’ मंत्र से पूजा का संकल्प लेना चाहिए।
    तत्पश्चात् दसों दिशाओं में अक्षत छोड़ना चाहिए।
  4. फिर व्यासजी, ब्रह्माजी, शुकदेवजी, गोविंद स्वामीजी और शंकराचार्यजी के नाम, मंत्र से पूजा का आवाहन करना चाहिए।
  5. अब अपने गुरु अथवा उनके चित्र की पूजा करके उन्हें यथा योग्य दक्षिणा देना चाहिए।

गुरु पूर्णिमा पर श्रद्धालुओं ने संगम में लगाई डुबकी

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प्रयागराज : आस्था के मानक गुरु पूर्णिमा पर्व पर लोगों ने संगम घाट पर आस्था की डुबकी लगाई और परिवार वालों के दुआएं मांगी हैं, हालांकि कोरोना प्रकोप की वजह से घाटों पर भीड़ नहीं हैं,आपको बता दें कि आषाढ़ मास की पूर्णिमा को ‘गुरु पूर्णिमा’ कहते हैं। इस दिन गुरु पूजा की जाती है, आज से चार महीने साधु-संत एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं। ज्ञान और योग की शक्ति ये चार महीने मौसम के हिसाब से भी सर्वश्रेष्ठ हैं, इस मौसम में ना तो ज्यादा गर्मी पड़ती है और न ही अधिक सर्दी इसलिए अध्ययन के लिहाज से ये सबसे अच्छे महीने हैं, इस दौरान ध्यान भी लगता है और इंसान शारीरिक और मानसिक तौर पर खुद को मजबूत भी महसूस करता है। चारों ओर बारिश होती है, जिससे धरती की तपन कम होती है और बारिश की शीतलता की शक्ति से फसल पैदा करती है, ठीक उसी तरह से गुरु-चरणों में उपस्थित साधकों को ज्ञान और योग की शक्ति मिलती है। ‘गु’ का अर्थ अंधकार या मूल अज्ञान और ‘रु’ का अर्थ किया गया है- उसका निरोधक।

‘गुरु’ को ‘गुरु’ इसलिए कहा जाता है कि वह अज्ञान तिमिर का ज्ञानांजन-शलाका से निवारण कर देता है और अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को ‘गुरु’ कहा जाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दी बधाई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरु पूर्णिमा के अवसर पर देशवासियों को बधाई दी है ।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, ‘मैं आज आषाढ़ पूर्णिमा के अवसर पर सभी को अपनी शुभकामनाएं देना चाहता हूं। इसे गुरु पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। आज का दिन हमारे गुरुओं को याद करने का दिन है, जिन्होंने हमें ज्ञान दिया। उस भावना में, हम भगवान बुद्ध को श्रद्धांजलि देते हैं।’ ‘व्यास पूर्णिमा’ संत घीसादास का भी जन्म भक्तिकाल के संत घीसादास का भी जन्म इसी दिन हुआ था वे कबीरदास के शिष्य थे। गुरु-पूर्णिमा के दिन महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्मदिन भी है। उन्होंने चारों वेदों की भी रचना की थी, इस कारण उनका एक नाम वेद व्यास भी है उन्हें आदिगुरु कहा जाता है।

6 से 12 जुलाई तक रहेंगे सिर्फ 4 व्रत

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ज्योतिष : जुलाई माह के दूसरे सप्ताह की शुरुआत सावन सोमवार से हो रही है। हफ्ते के पहले ही दिन से सावन भी शुरू हो रहा है। इन 7 दिनों में मंगला गौरी, संकष्टी चतुर्थी, मौना पंचमी और शीतला सप्तमी जैसे व्रत आएंगे। इनके अलावा कोई बड़ा त्योहार या पर्व नहीं रहेगा। इस सप्ताह 2 महत्वपूर्ण दिन रहेंगे। इनमें डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जयंती और एक विश्व जनसंख्या दिवस है।

ज्योतिषीय नजरिये से देखा जाए तो इस हफ्ते के पहले ही दिन सूर्य का नक्षत्र परिवर्तन होगा। सूर्य पुनर्वसु नक्षत्र में आ जाएगा। देवशयन और कृष्णपक्ष होने के कारण इस हफ्ते शुभ मुहूर्त भी नहीं हैं।

6 जुलाई, सोमवार – श्रावण कृष्णपक्ष, प्रतिपदा
7 जुलाई, मंगलवार – श्रावण कृष्णपक्ष, द्वितिया, मंगला गौरी व्रत
8 जुलाई, बुधवार – श्रावण कृष्णपक्ष, तृतीया, संकष्टी चतुर्थी व्रत
9 जुलाई, गुरुवार – श्रावण कृष्णपक्ष, चतुर्थी
10 जुलाई, शुक्रवार – श्रावण कृष्णपक्ष, पंचमी, मौना पंचमी
11 जुलाई, शनिवार – श्रावण कृष्णपक्ष, षष्ठी
12 जुलाई, रविवार – श्रावण कृष्णपक्ष, सप्तमी, शीतला पूजा

श्रावण सोमवार व्रत आज से प्रारम्भ, जाने श्रावण सोमवार की व्रत कथा

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श्रावण मास के प्रत्येक सोमवार को भगवान शिव के निमित्त व्रत किए जाते हैं। इस मास में शिव की पूजा का विशेष विधान है। कुछ भक्त तो पूरे मास ही भगवान शिव की पूजा-आराधना और व्रत करते हैं। अधिकांश व्यक्ति केवल श्रावण मास में पडऩे वाले सोमवार का ही व्रत करते हैं। श्रावण मास के सोमवारों में शिव के व्रतों, पूजा और शिव जी की आरती का विशेष महत्त्व है। शिव के ये व्रत शुभदायी और फलदायी होते हैं। इन व्रतों को करने वाले सभी भक्तों से भगवान शिव बहुत प्रसन्न होते हैं। यह व्रत भगवान शिव की प्रसन्नता के लिए किये जाते हैं। व्रत में भगवान शिव का पूजन करके एक समय ही भोजन किया जाता है। व्रत में भगवान शिव और माता पार्वती का ध्यान कर शिव पंचाक्षर मन्त्र का जप करते हुए पूजन करना चाहिए।

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श्रावण सोमवार की कथा के अनुसार, अमरपुर नगर में एक धनी व्यापारी रहता था। दूर-दूर तक उसका व्यापार फैला हुआ था। नगर में उस व्यापारी का सभी लोग मान-सम्मान करते थे। इतना सब कुछ होने पर भी वह व्यापारी अंतर्मन से बहुत दु:खी था, क्योंकि उस व्यापारी का कोई पुत्र नहीं था। दिन-रात उसे यही एक चिंता सताती रहती थी। उसकी मृत्यु के बाद उसके इतने बड़े व्यापार और धन-संपत्ति को कौन संभालेगा। पुत्र पाने की इच्छा से वह व्यापारी प्रति सोमवार भगवान शिव की व्रत-पूजा किया करता था। सायंकाल को व्यापारी शिव मंदिर में जाकर भगवान शिव के सामने घी का दीपक जलाया करता था।

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उस व्यापारी की भक्ति देखकर एक दिन पार्वती ने भगवान शिव से कहा- हे प्राणनाथ, यह व्यापारी आपका सच्चा भक्त है। कितने दिनों से यह सोमवार का व्रत और पूजा नियमित कर रहा है। भगवान, आप इस व्यापारी की मनोकामना अवश्य पूर्ण करें। भगवान शिव ने मुस्कराते हुए कहा- हे पार्वती! इस संसार में सबको उसके कर्म के अनुसार फल की प्राप्ति होती है। प्राणी जैसा कर्म करते हैं, उन्हें वैसा ही फल प्राप्त होता है। इसके बावजूद पार्वती जी नहीं मानीं। उन्होंने आग्रह करते हुए कहा- नहीं प्राणनाथ! आपको इस व्यापारी की इच्छा पूरी करनी ही पड़ेगी। यह आपका अनन्य भक्त है। प्रति सोमवार आपका विधिवत व्रत रखता है और पूजा-अर्चना के बाद आपको भोग लगाकर एक समय भोजन ग्रहण करता है। आपको इसे पुत्र-प्राप्ति का वरदान देना ही होगा।

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पार्वती का इतना आग्रह देखकर भगवान शिव ने कहा- तुम्हारे आग्रह पर मैं इस व्यापारी को पुत्र-प्राप्ति का वरदान देता हूं। लेकिन इसका पुत्र 16 वर्ष से अधिक जीवित नहीं रहेगा। उसी रात भगवान शिव ने स्वप्न में उस व्यापारी को दर्शन देकर उसे पुत्र-प्राप्ति का वरदान दिया और उसके पुत्र के 16 वर्ष तक जीवित रहने की बात भी बताई। भगवान के वरदान से व्यापारी को खुशी तो हुई, लेकिन पुत्र की अल्पायु की चिंता ने उस खुशी को नष्ट कर दिया। व्यापारी पहले की तरह सोमवार का विधिवत व्रत करता रहा। कुछ महीने पश्चात् उसके घर अति सुंदर पुत्र उत्पन्न हुआ। पुत्र जन्म से व्यापारी के घर में खुशियां भर गईं। बहुत धूमधाम से पुत्र-जन्म का समारोह मनाया गया। व्यापारी को पुत्र-जन्म की अधिक खुशी नहीं हुई, क्योंकि उसे पुत्र की अल्प आयु के रहस्य का पता था। यह रहस्य घर में किसी को नहीं मालूम था। विद्वान ब्राह्मणों ने उस पुत्र का नाम अमर रखा।

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जब अमर 12 वर्ष का हुआ तो शिक्षा के लिए उसे वाराणसी भेजने का निश्चय हुआ। व्यापारी ने अमर के मामा दीपचंद को बुलाया और कहा कि अमर को शिक्षा प्राप्त करने के लिए वाराणसी छोड़ आओ। अमर अपने मामा के साथ शिक्षा प्राप्त करने के लिए चल दिया। रास्ते में जहां भी अमर और दीपचंद रात्रि विश्राम के लिए ठहरते, वहीं यज्ञ करते और ब्राह्मणों को भोजन कराते थे। लंबी यात्रा के बाद अमर और दीपचंद एक नगर में पहुंचे। उस नगर के राजा की कन्या के विवाह की खुशी में पूरे नगर को सजाया गया था।

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निश्चित समय पर बारात आ गई, लेकिन वर का पिता अपने बेटे के एक आंख से काने होने के कारण बहुत चिंतित था। उसे इस बात का भय सता रहा था कि राजा को इस बात का पता चलने पर कहीं वह विवाह से इनकार न कर दें। इससे उसकी बदनामी होगी। वर के पिता ने अमर को देखा तो उसके मस्तिष्क में एक विचार आया। उसने सोचा क्यों न इस लडक़े को दूल्हा बनाकर राजकुमारी से विवाह करा दूं। विवाह के बाद इसको धन देकर विदा कर दूंगा और राजकुमारी को अपने नगर में ले जाऊंगा। वर के पिता ने इसी संबंध में अमर और दीपचंद से बात की। दीपचंद ने धन मिलने के लालच में वर के पिता की बात स्वीकार कर ली। अमर को दूल्हे के वस्त्र पहनाकर राजकुमारी चंद्रिका से विवाह करा दिया गया।

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राजा ने बहुत-सा धन देकर राजकुमारी को विदा किया। अमर जब लौट रहा था तो सच नहीं छिपा सका और उसने राजकुमारी की ओढऩी पर लिख दिया- राजकुमारी चंद्रिका, तुम्हारा विवाह तो मेरे साथ हुआ था, मैं तो वाराणसी में शिक्षा प्राप्त करने जा रहा हूं। अब तुम्हें जिस नवयुवक की पत्नी बनना पड़ेगा, वह काना है। जब राजकुमारी ने अपनी ओढऩी पर लिखा हुआ पढ़ा तो उसने काने लडक़े के साथ जाने से इनकार कर दिया। राजा ने सब बातें जानकर राजकुमारी को महल में रख लिया। उधर अमर अपने मामा दीपचंद के साथ वाराणसी पहुंच गया। अमर ने गुरुकुल में पढऩा शुरू कर दिया।

जब अमर की आयु 16 वर्ष पूरी हुई तो उसने एक यज्ञ किया। यज्ञ की समाप्ति पर ब्राह्मणों को भोजन कराया और खूब अन्न, वस्त्र दान किए। रात को अमर अपने शयनकक्ष में सो गया। शिव के वरदान के अनुसार शयनावस्था में ही अमर के प्राण-पखेरू उड़ गए। सूर्योदय पर मामा अमर को मृत देखकर रोने-पीटने लगा। आसपास के लोग भी एकत्र होकर दु:ख प्रकट करने लगे। मामा के रोने, विलाप करने के स्वर समीप से गुजरते हुए भगवान शिव और माता पार्वती ने भी सुने। पार्वती जी ने भगवान से कहा- प्राणनाथ! मुझसे इसके रोने के स्वर सहन नहीं हो रहे। आप इस व्यक्ति के कष्ट अवश्य दूर करें। भगवान शिव ने पार्वती जी के साथ अदृश्य रूप में समीप जाकर अमर को देखा तो पार्वती जी से बोले- पार्वती!

यह तो उसी व्यापारी का पुत्र है। मैंने इसे 16 वर्ष की आयु का वरदान दिया था। इसकी आयु तो पूरी हो गई। पार्वती जी ने फिर भगवान शिव से निवेदन किया- हे प्राणनाथ! आप इस लडक़े को जीवित करें। नहीं तो इसके माता-पिता पुत्र की मृत्यु के कारण रो-रोकर अपने प्राणों का त्याग कर देंगे। इस लडक़े का पिता तो आपका परम भक्त है। वर्षों से सोमवार का व्रत करते हुए आपको भोग लगा रहा है। पार्वती के आग्रह करने पर भगवान शिव ने उस लडक़े को जीवित होने का वरदान दिया और कुछ ही पल में वह जीवित होकर उठ बैठा।

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शिक्षा समाप्त करके अमर मामा के साथ अपने नगर की ओर चल दिया। दोनों चलते हुए उसी नगर में पहुंचे, जहां अमर का विवाह हुआ था। उस नगर में भी अमर ने यज्ञ का आयोजन किया। समीप से गुजरते हुए नगर के राजा ने यज्ञ का आयोजन देखा। राजा ने अमर को तुरंत पहचान लिया। यज्ञ समाप्त होने पर राजा अमर और उसके मामा को महल में ले गया और कुछ दिन उन्हें महल में रखकर बहुत-सा धन, वस्त्र देकर राजकुमारी के साथ विदा किया। रास्ते में सुरक्षा के लिए राजा ने बहुत से सैनिकों को भी साथ भेजा। दीपचंद ने नगर में पहुंचते ही एक दूत को घर भेजकर अपने आगमन की सूचना भेजी।

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अपने बेटे अमर के जीवित वापस लौटने की सूचना से व्यापारी बहुत प्रसन्न हुआ। व्यापारी ने अपनी पत्नी के साथ स्वयं को एक कमरे में बंद कर रखा था। भूखे-प्यासे रहकर व्यापारी और उसकी पत्नी बेटे की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने प्रतिज्ञा कर रखी थी कि यदि उन्हें अपने बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो दोनों अपने प्राण त्याग देंगे। व्यापारी अपनी पत्नी और मित्रों के साथ नगर के द्वार पर पहुंचा।

अपने बेटे के विवाह का समाचार सुनकर, पुत्रवधू राजकुमारी चंद्रिका को देखकर उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। उसी रात भगवान शिव ने व्यापारी के स्वप्न में आकर कहा- हे श्रेष्ठी! मैंने तेरे सोमवार के व्रत करने और व्रतकथा सुनने से प्रसन्न होकर तेरे पुत्र को लंबी आयु प्रदान की है। व्यापारी बहुत प्रसन्न हुआ। सोमवार का व्रत करने से व्यापारी के घर में खुशियां लौट आईं। शास्त्रों में लिखा है कि जो स्त्री-पुरुष सोमवार का विधिवत व्रत करते और व्रतकथा सुनते हैं, उनकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं।

ऐसे करें भगवान शिव को प्रसन्न हो जायेगी सभी मनोकामना पूरी

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व्रत विधि

श्रावण सोमवार के व्रत में भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा की जाती है। प्राचीन शास्त्रों के अनुसार सोमवार के व्रत तीन तरह के होते हैं। सोमवार व्रत की विधि सभी व्रतों में समान होती है। इस व्रत को श्रावण माह में आरंभ करना शुभ माना जाता है। सावन सोमवार व्रत सूर्योदय से प्रारंभ कर तीसरे पहर तक किया जाता है।

शिव पूजा के बाद सोमवार व्रत की कथा सुननी आवश्यक है। व्रत करने वाले को दिन में एक बार भोजन करना चाहिए। सावन सोमवार को ब्रह्म मुहूर्त में सोकर उठें। पूरे घर की सफाई कर स्नानादि से निवृत्त हो जाएं। गंगा जल या पवित्र जल पूरे घर में छिडक़ें। घर में ही किसी पवित्र स्थान पर भगवान शिव की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। पूरी पूजन तैयारी के बाद निम्न मंत्र से संकल्प लें-

मम क्षेमस्थैर्यविजयारोग्यैश्वर्याभिवृद्धयर्थं सोमव्रतं करिष्ये

इसके पश्चात् निम्न मंत्र से ध्यान करें-

ध्यायेन्नित्यंमहेशं रजतगिरिनिभं चारुचंद्रावतंसं
रत्नाकल्पोज्ज्वलांग परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम।
पद्मासीनं समंतात्स्तुतममरगणैव्र्याघ्रकृत्तिं वसानं
विश्वाद्यं विश्ववंद्यं निखिलभयहरं पंचवक्त्रं त्रिनेत्रम॥

ॐ नम: शिवाय से शिव का तथा ॐ शिवायै नम: से पार्वती का षोडशोपचार पूजन करें। पूजन के पश्चात् व्रत कथा सुनें। आरती कर प्रसाद वितरण करें। इसके बाद भोजन या फलाहार ग्रहण करें।

व्रत का फल

सोमवार व्रत नियमित रूप से करने पर भगवान शिव तथा देवी पार्वती की अनुकम्पा बनी रहती है। जीवन धन-धान्य से भर जाता है। भगवान शिव सभी अनिष्टों का हरण कर भक्तों के कष्ट दूर करते हैं।

राज्यपाल ने बाराबंकी में किया वृक्षारोपण, हर गांव पीपल-बरगद रोपने की अपील

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बाराबंकी में पौधा रोपण करतीं राज्यपाल आनंदीबेन पटेल

बाराबंकी, 6 जुलाई, दस्तक (ब्यूरो): राज्यपाल आनंदी बेन पटेल ने सोमवार को फतेहपुर ब्लॉक के ग्राम होलीपुरवा मजरे मवैया के तट पर पीपल का पौधा रोपा। पौधरोपण के बाद उन्होंने अपने संबोधन में हर गांव में सौ-पचास पीपल व बरगद के पौधे रोपित करने की अपील की। उन्होंने कहा कि पीपल व बरगद ऐसे वृक्ष हैं जो 24 घंटे ऑक्सीजन देते हैं। बतौर मुख्य अतिथि के रूप में वन महोत्सव में शिरकत करने पहुंचीं राज्यपाल ने नदी के पुनरुद्धार व पौधारोपण के लिए संबंधित लोगों को सराहा।

पीपल-बरगद के पेड़ रातों-दिन देते ऑक्सीजन-राज्यपाल

राज्यपाल आनंदीबेन पटेल

प्रधानमंत्री के जल संचयन व पर्यावरण संरक्षण की दिशा में किए जा रहे कार्यों का बखान करते राज्यपाल ने कहा कि आज यहा नदी का स्वरूप बहाल हुआ है और पौधे भी रोपित किए गए। कल्याणी सबका कल्याण करेगी। उन्होंने कहा कि कम ऑक्सीजन में श्वांस लेने में दिक्कत होती है। पीपल-बरगद के पेड़ रातों-दिन ऑक्सीजन देते हैं। इसलिए फलदार व अन्य पौधों के साथ ही हर गांव में 100-50 पीपल-बरगद पौधे रोपने चाहिए। औषधीय पौधे रोपने पर बल देते हुए कहा कि कोविड 19 बीमारी से बचना है तो काढ़ा पीना है। उन्‍होंने नदी के किनारे मवैया गांव के समूह की महिलाओं द्वारा औषधीय वाटिका लगाए जाने की सराहना भी की। उन्होंने हर बच्चे को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित करते हुए बालिका शिक्षा पर बल दिया। दहेज प्रथा को मिटाने के लिए पढ़े-लिखे लोगों को जागरूक करने पर जोर दिया।

शिव को अतिप्रिय है सावन मास, देवी पार्वती का भी है महीने से संबंध

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महादेव ने विष सावन के महीने में पीया था इसलिए विष की गरमी को शांत करने के लिए शिवलिंग पर जल चढ़ाया जाता है

ज्योतिष : सावन महीने में शिव आराधना करने से मानव को कष्टों से छुटकारा मिलता है और समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती है। मान्यता है कि सावन मास में शिवलिंग पर एक लोटा जल चढ़ाने से शिवभक्त की सभी मनकामनाएं पूर्ण हो जाती है। सावन मास के सोमवार को महादेव की विधि-विधान से पूजा करने पर शिवभक्त इहलोक में सभी सुखों को भोगकर अंत में भक्त मोक्ष को प्राप्त करता है।

सावन मास भोलेनाथ को अतिप्रिय क्यों है इस संबंध में पौराणिक शास्त्रों में एक कथा का वर्णन है। जिसके अनुसार सनतकुमारों ने एक बार कैलाशपति शिव से उनके सावन मास के प्रिय होने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि जब देवी सती ने अपने पिता राजा दक्ष के घर योगशक्ति के द्वारा अपनी देह को त्याग दिया था उस समय उस समय उन्होंने भोलेनाथ को ही प्रत्येक जन्म में पति के रूप में पाने के प्रण किया था। अपने प्रण के अनुसार देवी सती ने दूसरे जन्म में राजा हिमालय और रानी मैना के घर में पार्वती के रूप में लिया। युवावस्था प्राप्त होने पर देवी पार्वती ने सावन मास में अन्न, जल का त्याग कर दिया औऱ निराहार रहकर शिव पाने के लिए कठोर तप किया।

देवी पार्वती के कठोर तप से प्रसन्न होकर महादेव ने देवी पार्वती से विवाह का निश्चय किया और इस तरह हम दोनों परिणय सूत्र में बंध गए। इसलिए उस समय से सावन का महीना मुझे अतिप्रिय है। यह भी मान्यता है कि भोलेनाथ सावन मास में धरती पर अवतरित होकर अपने ससुराल गए थे।

ससुराल में उनका जलाभिषेक के साथ भव्य स्वागत किया गया था। इसलिए पौराणिक मान्यता के अनुसार सावन में भोलेनाथ हर साल ससुराल आते हैं और धरतीवासी उनका जलाभिषेक और विभिन्न तरीकों से भव्य स्वागत करते हैं। एक अन्य कथा के अनुसार मरकंडू ऋषि के पुत्र मारकंडेय को सावन मास में भगवान शिव की तपस्या करने से लंबी उम्र का वरदान मिला था इसलिए इस मास में शिव पूजा की जाती है।

सावन मास मे ही महादेव ने अमृत मंथन से निकले हलाहल को पीया था, विष काफी तेज और असरकारक था। महादेव ने इस कालकूट नाम के विष को अपने गले में रख लिया था। विष के कारण महादेव के शरीर में तेज गर्मी हुई थी।


सावन में 25 जुलाई को नाग पंचमी पर करें नाग देवताओं का पूजन, पूरी होगी मनोकामनाएं

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ज्योतिष : सावन महीना बेहद पवित्र माह माना जाता है। यह माह देवाधिदेव महादेव शिव को अति प्रिय है। इसी माह में नाग पंचमी का त्योहार भी आता है। नाग पंचमी का त्योहार नाग देवता को समर्पित है। इस दिन लोग नाग देवता का पूजन करके सुख समृद्धि की कामना करते हैं। तथा व्रत रखते हैं। भगवान भोलेनाथ के गले आदि में भी नाग लिपटें रहते हैं। ऐसी मान्यता है कि, नाग पंचमी के दिन नागों का पूजन करने से श्रद्धालुओं को उनके आशीर्वाद प्राप्ति होती है। इस बार सावन माह में नाग पंचमी के दिन एक खास संयोग बन रहा है।

प्रत्येक वर्ष नाग पंचमी का त्योहार श्रावण माह में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। इस वर्ष यह तिथि 25 जुलाई को पड़ रही है। इसलिए नाग पंचमी का त्योहार 25 जुलाई को शनिवार के दिन ही मनाया जाएगा। नाग पंचमी पर आठ नागों के पूजन का विधान बताया गया है। जिनमें वासुकि, तक्षक, कालिया, मणिभद्रक, ऐरावत, धृतराष्ट्र, कार्कोटक और धनंजय नामक अष्टनाग शामिल हैं।

इनके पूजन से श्रद्धालुओं को भय से मुक्ति मिल जाती है। इस विषय में भविष्योत्तर पुराण में एक श्लोक लिखा है-
वासुकिः तक्षकश्चैव कालियो मणिभद्रकः।
ऐरावतो धृतराष्ट्रः कार्कोटकधनंजयौ ॥
एतेऽभयं प्रयच्छन्ति प्राणिनां प्राणजीविनाम् ॥

धन-समृद्धि पाने के लिए भी नाग देवताओं की पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ऐसा माना जाता है कि नाग देवता, धन की देवी मां लक्ष्मी के रक्षक हैं। इस दिन श्रीया, नाग और ब्रह्म अर्थात शिवलिंग के रुप में इनका पूजन करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।

नाग पंचमी का मुहूर्त
पंचमी तिथि प्रारंभ – 14:33 (24 जुलाई 2020)
पंचमी तिथि समाप्ति – 12:01 (25 जुलाई 2020)
नाग पंचमी पूजा मुहूर्त – 05:38:42 बजे से 08:22:11 बजे तक
अवधि – 2 घंटे 43 मिनट

आईना देखकर ग़ुरूर फज़ूल, बात वो कर जो दूसरा न करे

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मुज़्तर खैराबादी के इस शेर को हकीकत का अमलीजामा पहनाने वाले एक ख़ास सख्शियत की याद आ गयी। दरअसल साल 2018 मेरे मुम्बई प्रवास का दौर था। 2019 के लोकसभा चुनाव की आहट जोरों पर थी, फ़िल्म इंडस्ट्री भी इससे अछूती न थी। तमाम छोटे छोटे प्रोड्यूसर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पंचवर्षीय कार्यों को केंद्र में रखकर अपने प्रोजेक्ट डिज़ाइन कर रहे थे।

ऐसे ही एक प्रोड्यूसर का मेरे पास भी कॉल आया कि मैं कुछ दमदार लिखकर दूं। मैं पार्टी बेस पॉलिटिकल राइटिंग नहीं करता था सो मैंने उन्हें मना कर दिया। किन्तु फ़ोन वार्ता के दौरान उसने मुझे रिसर्च के लिए जो कुछ नाम सुझाये उसमें एक नाम जनकवि हलधर नाग का था। इस नाम के साथ जो एक शार्ट डिस्क्रिप्शन बताया गया था उसने मेरे मन में बड़ी उत्सुकता पैदा कर दी थी।

मैंने हलधर नाग के बारे में जब जानना शुरू किया तो पन्ना दर पन्ना मैं हैरानी से भरता चला गया था। आज इस सावन मास की खूबसूरत संगीतमय झमाझम बारिश में न जाने कैसे कैसे ख़्यालों से गुज़रते हुए मेरा मन जनकवि हलधर नाग पर जा टिका। सावन जैसे रूहानी मौसम में इस तरह की यादें बेतुकी लगती हैं लेकिन हैदर अली आतिश का ये खूबसूरत शेर

“अजब तेरी है ऐ महबूब सूरत,
नज़र से गिर गए सब ख़ूबसूरत।।”


मेरी मनोदशा को पूर्णतयः व्यक्त करता है।

शक्ल से बदसूरत, दांत बेतरतीब और भद्दे, खुले खुले लंबे बाल तन पर कम से कम कपड़ा, पांव तो एक दम नंगा। ये आदमी देखा गया साल 2016 में राष्ट्रपति भवन प्रांगण में। अवसर था राष्ट्रीय पुरस्कार वितरण समारोह। इस बेतरतीब आदमी को देखकर वहां मौजूद वेल मेंटेन सभी लोग हैरान थे। ये आदमी भी हैरान था सबको देखकर।

तत्कालीन पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान दौड़ते हुए इस आदमी के पास आये और बोले-“हलधर बाबू, हलधर बाबू प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आपसे मिलने के लिए इधर ही आ रहे हैं।” सुनकर हलधर को भी थोड़ी उत्सुकता हुई सामने नरेंद्र मोदी आ चुके थे। उन्होंने हाथ मिलाते हुए हलधर से कहा “आपने ओडिशा के आकाश को और अधिक चमकदार बना दिया है हलधर बाबू।”

हलधर नाग बताते हैं जब उद्घोषक ने पुरस्कार मिलने वाले व्यक्तियों के नाम की घोषणा की तब पद्मश्री सम्मान के लिए हलधर नाग का नाम बोला गया। पद्मश्री भारत का तीसरा सबसे बड़ा सम्मान है। उद्घोषक की पुकार पर हलधर नाग ऊपरोक्त वर्णित दशा में ही मंच पर गए तो तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने उन्हें एक बार नीचे से ऊपर तक देखा और श्रद्धा व सम्मान में हलधर के सामने मुस्कराए।

कोसली कवि हलधर नाग का जन्म साल 1950 में बरगढ़, उड़ीसा में एक गरीब आदिवासी परिवार में हुआ था। जब हलधर तीसरी कक्षा में पढ़ते थे तब इनके सिर से पिता का हाथ हमेशा के लिए उठ गया और इनकी पारंपरिक पढ़ाई भी हमेशा के लिए बंद हो गयी। हलधर खुद का और परिवार का सिर्फ भरण करने हेतु दो वक्त की रोटी के बदले दो साल तक एक होटल में बर्तन धोते रहे। इस दशा को देखकर तत्कालीन ग्राम प्रधान का दिल पिघल गया और उन्होंने पास के कॉलेज कैंटीन में इन्हें नौकरी पर रखवा दिया।

हलधर नाग ने वहां दस साल तक नौकरी की, बर्तन धोए खाना आदि बनाया। फिर नौकरी के दौरान इनके प्रारब्ध ने इनका रिश्ता कुछ इस तरह से कॉपी किताबों से जोड़ा कि वही सिलसिला अब तक चलता चला आ रहा है। दरअसल हुआ कुछ यूं कि कॉलेज में विद्यार्थियों और उनकी ज़रूरतों को देखते हुए हलधर के मन में एक दिन विचार आया कि क्यों न एक छोटी सी स्टेशनरी खोली जाय।

दौड़ भागकर हलधर नाग ने बैंक से एक हज़ार रुपये का क़र्ज़ लेकर एक छोटी सी स्टेशनरी शुरू कर दी। एक कॉपी में उस दौरान हलधर नाग कुछ लिखते भी रहते थे। इत्तेफ़ाक़ से एक दिन एक पत्रकार महोदय कॉलेज किसी काम से आये थे और हलधर की दुकान तक आ गए। हलधर अपनी कॉपी में कुछ लिख रहे थे। पत्रकार चूंकि बड़े प्रपंची होते हैं, हर बात में पूछताछ उनका पेशा है। सो उन्होंने वहां भी वही किया। पत्रकार महोदय के आग्रह पर जब हलधर ने कॉपी दिखाई तो उसमें कोसली भाषा में कुछ लिखा था।

लोकल पत्रकार होने के नाते महोदय कोसली भी जानते थे। पत्रकार ने पढ़ा तो एक दिलचस्प कविता लिखी नज़र आयी। पत्रकार साहब उसे लेकर चले गए। अपने अखबार में उन्होंने हलधर नाग के नाम से उस कविता को छाप दिया। उसका शीर्षक दिया “डोडो बारगाछ” अर्थात एक पुराना बरगद का पेड़। कविता बहुत प्रसिद्ध हुई। अब हलधर नाग को आसपास के इलाकें में कविता सुनने के लिए बुलाया जाने लगा और इस तरह होटल में काम करने वाले हलधर बन गए जन कवि हलधर नाग।

हलधर बाबू नई नई कविताएं लिखते रहे और प्रसिद्धि की बुलंदियों को छूते रहे। कहते हैं हीरे की परख जौहरी को ही आती है। वही हुआ भी इस हीरे को बीबीसी नामक जौहरी ने परखा और इन पर एक डॉक्यूमेंट्री बना डाली और तब जनकवि हलधर नाग ओडिसा की सीमा से निकलकर अनुदित होने लगे। इनकी कविताओं पर अंग्रेज़ी अनुवाद किये गए। तमाम ख्यातियाँ इनकी झोली में आती रहीं और हलधर नाग इन ख्यातियाँ को अपने 5×7 के एक छोटे से कमरे में ढेर बनाकर रखते रहे। एक पत्रकार ने एक बार जब इनके घर जाकर साक्षत्कार किया तो इन सम्मान प्रसस्ति पत्रों को इस कदर ढेर में पड़ा देखकर हैरान रह गया।

हलधर नाग ने खुद तो पारंपरिक पढ़ाई नहीं कि है लेकिन इस प्रतिभाशाली मानव पर संबल यूनिवर्सिटी में छात्र पढ़ाई कर रहे हैं। पांच रिसर्चर ने अपने रिसर्च का विषय जनकवि हलधर नाग की कविताओं को ही बनाया है। संबल यूनिवर्सिटी ने हलधर नाग के समस्त लिटरेरी कार्यों को संकलित कर हलधर ग्रंथावली के नाम से प्रकाशित भी किया है। आज भी हलधर नाग साधारण से भी साधारण बेस भूषा और रहन सहन में रहते हैं। उनके जीविकोपार्जन का मुख्य माध्यम आज भी चना और गुघुनी बेचना है।

हलधर नाग के गांव में केंद्र सरकार एक रिसर्च सेंटर स्थापित करना चाहती है। इस संबंध में जब एक पत्रकार ने जनकवि से पूछा तो वह हंसते हुये कोसली में बोले कि पता नहीं लेकिन सुना हमने भी है कि 25 लाख का कोई प्रोजेक्ट लगने वाला है। उसी पत्रकार ने पूछा कि आप इतने राजनेताओं से मिलते हैं आप अपने आर्थिक दशा को सुधारने के लिए कभी किसी राजनेता से कुछ कहते नहीं है? तो जनकवि ने बड़ा सुंदर उत्तर दिया कि “जो इंसान पांव में चप्पल तक नहीं पहनता उसे किसी से कुछ मांगने की ज़रूरत हो सकती है भला !”

बस यही अदा है हलधर नाग की क़ि मैं ही नहीं प्रसिद्ध व्यक्तित्व गुलज़ार साब ने भी उनके प्रति सम्मान व्यक्त करने के लिए प्रोड्यूसर भारतबाला के virtual bharat चैनल के साथ मिलकर एक वीडियो बनाया है। जिसकी शुरुआत गुलज़ार साब अपने अंदाज में “मैं तुम्हारे नाम एक ख़त लिख रहा हूँ हलधर’ बोलते हुए करते हैं। ये पंक्तियां भी हलधर नाग की एक कविता है। ईश्वर से कामना है कि यूँ ही सम्मानों का सिलसिला चलता रहे और जनकवि हलधर की प्रतिभा का और सुंदर सुंदर रूप हम देख सकें।

(लेखक फ़िल्म स्क्रीन राइटर, फ़िल्म समीक्षक, फ़िल्मी किस्सा कहानी वाचक है)

8 जुलाई 2020 का राशिफल: जाने कैसे रहेगा आपका आज का दिन

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मेष राशि

आज का दिन सामान्य है। आज मन अस्थिर रहेगा। स्थायी संपत्ति को लेकर विवाद हो सकता है। व्यवसाय में मजबूती रहेगी। पारिवारिक वातावरण में सामंजस्य बनाकर रखें। आज के दिन कोई महत्वपूर्ण निर्णय न करें। माता से विवाद हो सकता है, अत: वाणी पर नियंत्रण रखें। व्यवहार में संयम रखें।
वृष राशि

आज का दिन शुभ है। आज आपका मन प्रसन्न रहेगा। मामा पक्ष से सहयोग प्राप्त होगा। धन से संबंधित आज का दिन शुभ है। धन प्राप्त भी होगा एवं उसका सदुपयोग भी होगा। छोटे भाइयों से प्रेम व्यवहार बढ़ेगा एवं उनसे सहयोग भी प्राप्त होगा। प्रेम-प्रसंग में सफलता मिलेगी। पारिवारिक जीवन सुखमय रहेगा। व्यापार व कार्यक्षेत्र में नई योजनाएं बनेंगी।
मिथुन राशि

आज आपका मन अस्थिर रहेगा। मन में अजीब-सा भय रहेगा। वर्तमान परिस्थितियों को लेकर मन में चिंता बनी रहेगी। कर्म के प्रति उदासीनता रहेगी। मन में आत्मविश्वास बनाकर रखें एवं कार्य करते रहें। मन को एकाग्र रखें। व्यर्थ की चिंता न करें। भविष्य को लेकर चिंतित न हों। वैवाहिक जीवन में सामंजस्य बनाकर चलें। परिवार के सदस्यों के विचारों का सम्मान करें। अपनी आत्मा की शक्ति से दिन अनुकूल होगा।

कर्क राशि

आज का दिन शुभ है। आपका मन प्रसन्न रहेगा। आप आज अपने अंदर आत्मविश्वास महसूस करेंगे। छोटे भाई-बहनों से सम्मान प्राप्त होगा। स्थायी संपत्ति के योग बनते हैं। किसी अच्छे कार्य या संपत्ति में निवेश करेंगे। माता-पिता का विशेष स्नेह प्राप्त होगा। संतान का भाग्योदय होगा। संतान पक्ष से प्रसन्नता प्राप्त होगी।
सिंह राशि

आज का दिन सामान्य है। मन में उदासीनता रहेगी। संतान से वैचारिक विरोधाभास रहेगा। अपने व्यवहार पर नियंत्रण रखें एवं संतान के विचारों को भी महत्व दें। अनावश्यक शंका करने की प्रवृत्ति को त्याग दें, क्योंकि इससे परिवार में वैमनस्य बढ़ सकता है। माता के विचारों का सम्मान करें। परेशानी में राहत मिलेगी।

कन्या राशि

आज का दिन शुभ है। बड़े भाई-बहनों का पूर्ण सहयोग प्राप्त होगा। उनसे आर्थिक रूप से भी मदद मिलेगी। छोटे भाई से भी सम्मान प्राप्त होगा। धन प्राप्ति के योग बनते हैं। आय के साधन मजबूत होंगे। जीवनसाथी का भाग्य भी आपको पूर्ण रूप से सहयोग प्रदान करेगा। व्यापार में नई योजनाएं लागू करेंगे। कार्यक्षेत्र एवं धन में अच्छा लाभ प्राप्त होगा।

तुला राशि

आज का दिन शुभ नहीं है। मन में भय की स्थिति बनी रहेगी। क्रोध पर नियंत्रण रखें। व्यापार में वृद्धि हेतु योजनाओं को सोच-समझकर लागू करें। व्यापार में कुछ अस्थिरता भी बनी रह सकती है। कोई महत्वपूर्ण व्यापारिक यात्रा हो सकती है। वर्तमान में जीवनसाथी का आपके ऊपर पूर्ण प्रभाव है, अत: कुछ मामलों में जीवनसाथी की सलाह भी आपको लाभ प्रदान करेगी।
वृश्चिक राशि के लिए आज का कल्याणकारी उपाय जपें- ‘ॐ बृं बृहस्पतये नम:’।

वृश्चिक राशि

आज का दिन शुभ है। धर्म-कर्म में रुचि रहेगी। आध्यात्मिकता में आनंद प्राप्त होगा। कुटुम्ब में कोई शुभ अवसर प्रस्तुत होगा। संतान में भी ज्ञान का उदय होगा। संस्कारों का प्रभाव बढ़ेगा जिससे आपके मन में प्रसन्नता बनी रहेगी। अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें। पेट एवं नसों संबंधी कोई कष्ट हो सकता है। ससुराल में कोई शुभ प्रसंग हो सकता है।

धनु राशि

आज का दिन सामान्य रहेगा। मन में कठोर परिश्रम करने की इच्छा होगी। धार्मिकता कुछ कम होगी। सिर्फ मन में कर्म की प्रधानता होगी। मन में क्रोध बना रहेगा जिससे चिड़चिड़ाहट बनी रहेगी, परंतु अपने व्यवहार में संयम रखें। जीवनसाथी का प्रभाव भी अधिक रहेगा, अत: सामंजस्य बनाकर कार्य करें। कठोर वाणी से रिश्तों में दरार आ सकती है। कोई महत्वपूर्ण यात्रा हो सकती है।

मकर राशि

आज का दिन शुभ है। भाग्योन्नति प्राप्त होगी। शुभ समाचार प्राप्त होंगे। जीवनसाथी से संबंधित शुभ समय है। जीवनसाथी का भाग्य प्रबल है। स्थायी संपत्ति के योग बनते हैं। सुख-सुविधाओं में धन खर्च होगा। मामा पक्ष से भी शुभ समाचार मिल सकता है। कार्यक्षेत्र से संबंधित यात्रा के योग हैं।

कुंभ राशि

आज का दिन शुभ नहीं है। वाहनादि सावधानी से चलाएं, दुर्घटना हो सकती है। आज के दिन लंबी यात्रा को नजरअंदाज करें। जहां तक जरूरत हो, उतना ही वाहन चलाएं। माता का आशीर्वाद अवश्य प्राप्त करें, सफलता मिलेगी। शत्रुओं से सावधान रहें। कोई गुप्त शत्रु हानि पहुंचा सकता है। पहले के कार्यों से लाभ प्राप्त होगा।

मीन राशि

आज का दिन शुभ है। प्रेम-प्रसंग में सफलता मिलने की संभावना है। जीवनसाथी से मधुर संबंध रहेंगे। धार्मिक कार्य होने की संभावना है। भाग्य साथ देगा। आपके अधिकारी आपसे प्रसन्न रहेंगे। पिता का पूर्ण सहयोग प्राप्त होगा। सुख-सुविधाओं पर धन खर्च होगा। आय में बढ़ोतरी होगी। धन की मात्रा बढ़ेगी। संतान के लिए भाग्यवर्धक समय है। संतान पक्ष से आपको खुशी प्राप्त होगी।

जाने गणेश चतुर्थी की कथा और पूजन विधि

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गणेश चतुर्थी हिन्दुओं का त्योहार है, जो भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन मनाया जाता है। वैसे तो प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी, गणेश के पूजन और उनके नाम का व्रत रखने का विशिष्ट दिन है। श्री गणेश विघ्न विनायक हैं। ये देव समाज में सर्वोपरि स्थान रखते हैं।

भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को मध्याह्न के समय गणेश जी का जन्म हुआ था। भगवान गणेश बुद्धि के देवता हैं। गणेश जी का वाहन चूहा है। ऋद्धि व सिद्धि गणेश जी की दो पत्नियां हैं। इनका सर्वप्रिय भोग लड्डू हैं। प्राचीन काल में बालकों का विद्या-अध्ययन आज के दिन से ही प्रारम्भ होता था। आज बालक छोटे-छोटे डण्डों को बजाकर खेलते हैं। यही कारण है कि लोकभाषा में इसे डण्डा चौथ भी कहा जाता है।

कैसे मनाएँ

इस दिन प्रात:काल स्नानादि से निवृत्त होकर सोने, तांबे, मिट्टी अथवा गोबर की गणेश जी की प्रतिमा बनाई जाती है। गणेश जी की इस प्रतिमा को कोरे कलश में जल भरकर, मुंह पर कोरा कपड़ा बांधकर उस पर स्थापित किया जाता है। फिर मूर्ति पर (गणेश जी की) सिन्दूर चढ़ाकर षोडशोपचार से पूजन करना चाहिए।

गणेश जी को दक्षिणा अर्पित करके 21 लड्डूओं का भोग लगाने का विधान है। इनमें से 5 लड्डू गणेश जी की प्रतिमा के पास रखकर शेष ब्राह्मणों में बांट देने चाहिए। गणेश जी की आरती और पूजा किसी कार्य को प्रारम्भ करने से पहले की जाती है और प्रार्थना करते हैं कि कार्य निर्विघ्न पूरा हो।

गणेश जी का पूजन सायंकाल के समय करना चाहिए। पूजनोपरांत दृष्टि नीची रखते हुए चंद्रमा को अर्घ्य देकर, ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा भी देनी चाहिए। इस प्रकार चंद्रमा को अर्घ्य देने का तात्पर्य है कि जहां तक संभव हो आज के दिन चंद्रमा के दर्शन नहीं करने चाहिए। क्योंकि इस दिन चंद्रमा के दर्शन करने से कलंक का भागी बनना पड़ता है।

फिर वस्त्र से ढका हुआ कलश, दक्षिणा तथा गणेश जी की प्रतिमा आचार्य को समर्पित करके गणेश जी के विसर्जन का विधान उत्तम माना गया है। गणेश जी का यह पूजन करने से विद्या, बुद्धि की तथा ऋद्धि-सिद्धि की प्राप्ति तो होती ही है, साथ ही विघ्न-बाधाओं का भी समूल नाश हो जाता है।

गणेश चतुर्थी की कथा

एक बार भगवान शंकर स्नान करने के लिए कैलाश पर्वत से भोगावती नामक स्थान पर गए। उनके जाने के बाद पार्वती ने स्नान करते समय अपने तन के मैल से एक पुतला बनाया और उसे सतीव कर दिया। उसका नाम उन्होंने गणेश रखा। पार्वती जी ने गणेश जी से कहा- ‘हे पुत्र! तुम एक मुद्गर लेकर द्वार पर जाकर पहरा दो। मैं भीतर स्नान कर रही हूं। इसलिए यह ध्यान रखना कि जब तक मैं स्नान न कर लूं,तब तक तुम किसी को भीतर मत आने देना। उधर थोड़ी देर बाद भोगावती में स्नान करने के बाद जब भगवान शिव जी वापस आए और घर के अंदर प्रवेश करना चाहा तो गणेश जी ने उन्हें द्वार पर ही रोक दिया।

इसे शिवजी ने अपना अपमान समझा और क्रोधित होकर उसका सिर, धड़ से अलग करके अंदर चले गए। टेढ़ी भृकुटि वाले शिवजी जब अंदर पहुंचे तो पार्वती जी ने उन्हें नाराज़ देखकर समझा कि भोजन में विलम्ब के कारण महादेव नाराज़ हैं। इसलिए उन्होंने तत्काल दो थालियों में भोजन परोसकर शिवजी को बुलाया और भोजन करने का निवेदन किया। तब दूसरी थाली देखकर शिवजी ने पार्वती से पूछा-‘यह दूसरी थाली किस के लिए लगाई है?’ इस पर पार्वती जी बोली-‘ अपने पुत्र गणेश के लिए, जो बाहर द्वार पर पहरा दे रहा है।’

यह सुनकर शिवजी को आश्चर्य हुआ और बोले- ‘तुम्हारा पुत्र पहरा दे रहा है? किंतु मैंने तो अपने को रोके जाने पर उसका सिर धड़ से अलग कर उसकी जीवन लीला समाप्त कर दी।’ यह सुनकर पार्वतीजी बहुत दुखी हुईं और विलाप करने लगीं। उन्होंने शिवजी से पुत्र को पुनर्जीवन देने को कहा। तब पार्वती जी को प्रसन्न करने के लिए भगवान शिव ने एक हाथी के बच्चे का सिर काटकर उस बालक के धड़ से जोड़ दिया। पुत्र गणेश को पुन: जीवित पाकर पार्वती जी बहुत प्रसन्न हुईं। उन्होंने पति और पुत्र को भोजन कराकर फिर स्वयं भोजन किया। यह घटना भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को घटित हुई थी। इसलिए यह तिथि पुण्य पर्व के रूप में मनाई जाती है।

जाने क्या है आज 8 जुलाई का इतिहास

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8 जुलाई की महत्त्वपूर्ण घटनाएँ

  • 1497 – वास्को द गामा ने यूरोप से भारत की प्रथम जलयात्रा आरंभ की।
  • 1858 – ग्वालियर के क़िले के पतन के बाद लॉर्ड केनिंग ने सांति की घोषणा की थी।
  • 1918 – भारतीय संविधान में सुधार के लिए मांटेग्यु चेम्सफोर्ड रपट प्रकाशित की गई।
  • 1954 – सतलुज नदी पर निर्मित भाखड़ा नांगल पनबिजली परियोजना पर बनी सबसे बड़ी नहर का प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उद्घाटन किया था।
  • 1975 – में म्यांमार के बगाँ में आए भूकंप में हज़ारों मंदिर ध्वस्त हो गए तथा भारी जानमाल की छति हुई।
  • 1994 – शिमाकी मुकाई जापान की प्रथम महिला अंतरिक्ष यात्री बनी।
  • 1999 – पापुआ न्यु गिनी (प्रशान्त महासागरीय देश) प्रधानमंत्री बिल स्कोट का इस्तीफ़ा।
  • 2002 – दक्षिण अफ़्रीका में अश्वेत क्रिकेटरों के लिए कोटा प्रणाली समाप्त।
  • 2003 – सूडान में हुए विमान हादसे में 115 लोग मारे गये।
  • 2005 – जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर समूह-8 के देशों में सहमति बनी।
  • 2008 – पेरिस की सरकार ने बांग्लादेश की विवादाग्रस्त लेखिका तस्लीमा नसरीन को मानद नागरिकता देने का प्रस्ताव किया।
  • 2012- असम में भयावह बाढ़ ने विश्व प्रसिद्ध काज़ीरंगा राष्ट्रीय उद्यान के 13 गैंडों समेत
  • 500 से अधिक वन्य प्राणियों को लील लिया।

8 जुलाई को जन्मे व्यक्ति

  • 1972 – सौरव गांगुली – भारतीय क्रिकेट टीम कप्तान।
  • 1958 – नीतू सिंह – हिन्दी चलचित्र अभिनेत्री।
  • 1949 – गेगोंग अपांग – अरुणाचल प्रदेश से भारतीय राजनीतिज्ञ हैं।
  • 1949 – वाई. एस. राजशेखर रेड्डी – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राजनीतिज्ञ थे, जो आंध्र प्रदेश के 14वें मुख्यमंत्री रहे।
  • 1937 – गिरिराज किशोर – हिन्दी के प्रसिद्ध उपन्यासकार, सशक्त कथाकार, नाटककार और आलोचक।
  • 1914 – ज्योति बसु – भारतीय मार्क्सवादी राजनितिज्ञ, पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री।
  • 1912 – बनारसी दास – भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे।
  • 1898 – पी. एस. कुमारस्वामी राजा – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राजनीतिज्ञ थे।

8 जुलाई को हुए निधन

  • 2018 – एम. एम. जेकब – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राजनीतिज्ञ थे।
  • 2007 – चन्द्रशेखर सिंह – भारत के 11वें प्रधानमंत्री।
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